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' मै- मै' कहता भटक रहा, ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - ' मै- मै' कहता भटक रहा, ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

'मै-मै' कहता भटक रहा, भवसागरकी चोटें सहता ।

नहीं परंतु जानता 'मै' है कौन तथा कैसे कहता?

यदि शरीर ही 'मै' होता, तो सबमें 'मै' कैसे रहता ॥

होता 'मै' मन-इन्द्रिय तो, इनको मेरे कैसे कहता?

सुन रहा छिपकर सारी बात ।

देखता सभी घात-प्रतिघात ॥

हो गयी उससे अब पहचान ।

वही मै, भेद गया हूँ जान ॥

उसीमें समा रहा तू यार ! परम प्रिय मेरे प्राणाधार !

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Last Updated : September 25, 2008

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