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सनातन सत -चित आनँद रूप । ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - सनातन सत -चित आनँद रूप । ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

सनातन सत-चित आनँद रूप । अगुण, अज, अव्यय, अलख, अनूप ॥

अगोचर, आदि, अनादि, अपार । विश्व-व्यापक, विभु, विश्वाधार ॥

न पाता जिनकी कोई थाह । बुद्धि-बल हो जाते गुमराह ॥

संत श्रद्धालु तर्क कर त्याग । सदा भजते मनके अनुराग ॥

समझकर विषवत् सारे भोग । त्याग, हो जाते स्वस्थ निरोग ॥

एक,बस, करते प्रियकी चाह । बिचरते जगमें बेपरवाह ! ॥

धरा, धन, धाम, नाम, आराम । सभी कुछ राम विश्व-विश्राम ॥

देखते सबमें ऐसे भक्त । सतत रहते चिन्तन-आसक्त ॥

प्रेम-सागरकी तुंग तरंग । बाँध मर्यादाका कर भंग ॥

बहा ले जाती जब श्रुतिधार । संत तब करते प्रेम पुकार ॥

प्रेमवश विह्वल हो श्रीराम । भक्त-मन-रञ्जन अति अभिराम ॥

दिव्य मानव-शरीरवर धार । अनोखा, लेते जग अवतार ॥

मदन-मनमोहन, मुनि-मन-हरण । सुरासुर सकल विश्व सुख-करण ॥

मधुर मञ्जुल मूरति द्युतिमान । विविध क्रीड़ा करते भगवान ॥

दयावश करते जग-उद्धार । प्रेमसे, तथा किसीको मार ॥

विविध लीला विशाल शुचि चित्र । अलौकिक सुखकर सभी विचित्र ॥

जिन्हे गा-सुनकर मोहारा । सहज होते भव-वारिधि पार ॥

तोड़ माया-बन्धन जग-जाल । देखते 'सीय-राम' सब काल ॥

वही सुन्दर मृदु युगल-स्वरूप । दिकाते रहो राम रघु-भूप ! ॥

'सकल जग सीय राममय' जान । करूँ सबको प्रणाम, तज मान ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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