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छोड मन तू मेरा -मेरा , अं...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - छोड मन तू मेरा -मेरा , अं...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।


छोड मन तू मेरा-मेरा, अंतमें कोई नही तेरा ॥

धन कारण भटक्यो फिरयो, रच्या नित नया ढंग ।

ढूँढ-ढूँढकर पाप कमाया, चली न कौड़ी संग ।

होय गया मालक बहुतेरा ॥छोड०॥

टेढी बाँधी पागडी, बण्यो छबीलो छैल ।

धरतीपर गिणकर पग मेल्या, मौत निमाणी गैल ।

बखेरया हाड-हाड तेरा ॥छोड०॥

नित साबुनसैं न्हाइयो, अतर-फुलेल लगाय ।

सजी-सजाई पूतली तेरी पडी मसाणाँ जाय ।

जलाकर करी भसम-ढेरा ॥छोड़०॥

मदमातो, करणो, रह्यो, राख्या राता नैन ।

आयानें आदर नहिं दीन्यो, मुख नहिं मीठा बैन ।

अंत जमदूत आय घेरा ॥छोड़०॥

पर-धन परन-नारी तकी, परचरचास्यूँ हेत ।

पाप-पोट माथेपर मेली, मूरख रह्यो अचेत ।

हुआ फिर नरकाँमें डेरा ॥छोड०॥

राम-नाम लीन्हों नहीं, सतसंगस्यूँ नहिं नेह ।

जहर पियो, छोड्यो इमरतनै, अंत पडी मुख खेह ॥

साँस सब वृथा गया तेरा ॥छोड़०॥

दुरलभ देही खो दई, करम करया बदकार ।

हूँ हूँ करतो ही मरयो तूँ गयो जमारो हार ।

पड्यो फिर जनम-मरण फेरा ॥छोड़०॥

काम क्रोध मद-लोभ तज, कर अंतरमें चेत ।

'मै' 'मेरे' ने छोड ह्रदैसें कर श्रीहरिस्यूँ हेत ।

जनम यूँ सफल होय तेरा ॥छोड०॥

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Last Updated : May 24, 2008

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