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डरते रहो यह जिन्दगी , ...

विविध - डरते रहो यह जिन्दगी , ...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


डरते रहो यह जिन्दगी, बेकार ना हो जाय ।

सपनेमें भी किसी जीवका, अपकार ना हो जाय ॥ १ ॥

पाया है तन अनमोल, सदाचारके लिये ।

विषयोमें फँसके कहीं, अनाचार ना हो जाय ॥ २ ॥

सेवा करो सब देशकी, शुभ- कर्म हरि-भजन ।

इतना भी करके पीछे, अहंकार ना हो जाय ॥ ३॥

मंजिल असल मुकामकी, तय करनी है तुम्हें ।

इस ठग नगरीमें आयके, गिरफ्तार ना हो जाय ॥ ४ ॥

‘माधव’ लगी है बाजी, माया मोह- जालसे ।

धोखेमें फँसके अबके, कहीं हार ना हो जाय ॥ ५ ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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