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मनवा नाँहि विचारो, थारी म...

विविध - मनवा नाँहि विचारो, थारी म...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


मनवा नाँहि विचारो, थारी म्हारी करता ऊमर बीती सारी रे ॥ टेर॥

नव दस मास गर्भ में राख्यो, माता थाँरी रे ।

नाथ बाहिर काढ भगती कर स्यूँ थाँरी रे ॥ १॥

बालपने में लाड लडायो, माता थाँरी रे ।

भर जोबन में लगे पियारी, नारी प्यारी रे ॥२॥

माया माया करतो फिर् यो जड़ से भारी रे ।

कौड़ी कौड़ी कारण मूरख ले तो राड़ उधारी रे ॥३॥

विरध भयो जब यूँ उठ बोली, घर की नारी रे ।

अब बुढलो मर जाय तो छूटे, गैल हमारी रे ॥४॥

रुक गया साँस दशों दरवाजा, मच रही घ्यारी रे !

कालूराम गुराँके शरणे, कह दी सारी रे ॥५॥

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Last Updated : January 22, 2014

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