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मैं तो गिरधर के रंग ...

विविध - मैं तो गिरधर के रंग ...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


मैं तो गिरधर के रंग राती ॥ टेर॥

पचरंग चोला पहिर सखीरी, झुरमुट खेलन जाती ।

झुरमुट में मोहि मिलियो साँवरो, खोल मिली तन गाती ॥१॥

और सखी मद पी-पी माती, मैं बिन पिये रहूँ माती ।

मैं रस पीऊँ प्रेम भट्टी को, छकी रहूँ दिन राती ॥२॥

कोई के पिया परदेस बसत हैं, लिख-लिख भेजत पाती ।

मेरे पिया मेरे घट में बिराजे, बात करुँ दिन राती ॥३॥

सुरति निरति का दिवला सँजोऊँ, मनसा की करलूँ बाती ।

अगम घाणी से तेल कढ़ाऊँ, बाल रही दिन राती ॥४॥

पीहर रहूँ ना सासरे में, प्रभु से सैना लगाती ।

मीरा कह प्रभु गिरधर नागर, चरण रहूँ दिन राती ॥५॥

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Last Updated : January 22, 2014

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