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मैं नहीं , मेरा नहीं , ...

विविध - मैं नहीं , मेरा नहीं , ...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया ।

जो भी अपने पास है, वह धन किसी का है दिया ॥

देने वाले ने दिया, वह भी दिया किस शान से ।

‘मेरा है’ यह लेने वाला कह उठा अभिमान से ॥

‘मैं-मेरा’ यह कहने वाला मन किसीका है दिया ।

जो मिला है वह हमेशा पास रह सकता नहीं ॥

कब बिछुड़ जाये, यह कोई राज कह सकता नहीं ।

जिन्दगानी का खिला मधुवन किसी का है दिया ॥

मैं नहीं, मेरा नहीं यह तन किसी का है दिया ।

जग की सेवा, खोज अपनी, प्रीति उनसे कीजिये ॥

जिन्दगी का राज है, यह जानकर जी लीजिये ।

साधना की राह पर साधन किसीका है दिया ॥

मैं नहीं........ ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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