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भये प्रगट कृपाला दीन ...

विविध - भये प्रगट कृपाला दीन ...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


भये प्रगट कृपाला दीन दयाला, यशुमतिके हितकारी ।

हर्षित महतारी रुप निहारी, मोहन-मदन मुरारी ॥१॥

कंसासुर जाना अति भय माना, पुतना बेगि पठाई ।

सो मन मुसुकाई हर्षित धाई, गई जहाँ जदुराई ॥२॥

तेहि जाइ उठाई हृदय लगाई, पयोधर मुखमें दीन्हें ।

तब कृष्ण कन्हाई मन मुसुकाई, प्राण तासु हरि लीन्हें ॥३॥

जब इन्द्र रिसाये मेघ बुलाये, वशीकरण ब्रज सारी ।

गौवन हितकारी मुनि मन हारी, नखपर गिरीवर धारी ॥४॥

कंसासुर मारे अति हंकारे, वत्सासुर संहारे ।

बक्कासुर आयो बहुत डरायो, ताकर बदन बिडारे ॥५॥

अति दीन जानि प्रभु चक्रपाणी, ताहि दीन निज लोका ।

ब्रह्मासुर राई अति सुख पाई, मगन हुये गये शोका ॥६॥

यह छन्द अनूपा है रस रुपा, जो नर याको गावै ।

तेहि सम नहिं कोई त्रिभुवन माँहीं, मन-वांछित फल पावै ॥७॥

दोहा-नन्द यशोदा तप कियो, मोहन सो मन लाय ।

तासों हरि तिन्ह सुख दियो, बाल -भाव दिखलाय ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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