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पछतायेगा , पछतायेगा फिर ...

विविध - पछतायेगा , पछतायेगा फिर ...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


पछतायेगा, पछतायेगा फिर गया समय नहीं आयेगा ॥ टेर॥

रतन अमोलक मिलिया भारी काँच समझ कर दीना डारी ।

खोजत नाहीं मूरख अनड़ी, फेर कभी नहीं पायेगा ॥१॥

नदी किनारे बाग लगाया, मूरख सोवे ठंडी छाया ।

काल चिडैया सब फल खाया, खाली खेत रह जायेगा ॥२॥

बालूका तू महल बनावे, कर कर जतन सामान सजावे ।

पल में वर्षा आय गिरावे, हाथ मसल रह जायेगा ॥३॥

लगा बजार नगर के माँहीं, सब ही वस्तु मिले सुखदाई ।

ब्रह्मानन्द खरीदी भाई बेग दुकान उठायेगा ॥४॥

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Last Updated : January 22, 2014

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