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नाथ ! थारे सरणे आयोजी ...

विविध - नाथ ! थारे सरणे आयोजी ...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


नाथ ! थारे सरणे आयोजी ।

जचे जिसतरां, खेल खिलाओ, थे मन चायो जी ॥१॥

बोझो सभी उतर् यो मनको, दुख बिनसायो जी ।

चिन्ता मिटी, बड़े चरणोंको सहारो पायो जी ॥२॥

सोच फिकर अब सारो थारे ऊपर आयो जी ।

मैं तो अब निश्विन्त हुयो अन्तर हरखायो जी ॥३॥

जस अपजस सब थारो, मैं तो दास कुहायो जी ।

मन भँवरो थारे चरण कमलमें जा लिपटायो जी ॥४॥

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Last Updated : January 22, 2014

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