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तन धर सुखिया कोई न द...

विविध - तन धर सुखिया कोई न द...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


तन धर सुखिया कोई न देख्या जो देख्या सो दुखिया वे ।

उदै अस्तकी बात कहत हूँ सबका किया विवेक वे ॥ टेर॥

सुक आचारज दुख के कारण, गर्भ में माया त्यागी वे ।

घाटाँ-घाटाँ सब जग दुखिया, क्या गेही वैरागी रे ॥१॥

साँच कहूँ तो को न माने, झूठो कही न जाई वे ।

ब्रह्मा विष्णु महेश्वर दुखिया , जिन यह सृष्टि रचाई वे ॥२॥

जोगी दुखिया जंगम दुखिया तपसी को दुख दूना वे ।

आसा तृष्णा सब घट व्यापे, को महल नहीं सूना वे ॥३॥

राजा दुखिया प्रजा दुखिया, रंक दुखी धन रीता वे ।

कहत कबीर सभी जग दुखिया, साधु सुखी मन जीता वे ॥४॥

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Last Updated : January 22, 2014

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