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करमाँ की रेखा न्यारी ,...

विविध - करमाँ की रेखा न्यारी ,...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


करमाँ की रेखा न्यारी, विधना टारी नाय टरे ॥टेर॥

लख घोड़ा लख पालखी, सिर पर छत्र फिरे,

हरिश्चन्द्र सतवादी राजा नीच घर नीर भरे ॥१॥

राजा दसरथ के ताल में रे सरवन नीर भरे,

लग्यो बाण राजाके हाथ को, राम ही राम करे ॥२॥

गुरु वसिष्ठ महा मुनी ग्यानी लिख लिख लगन धरे,

सियाजी को हरन मरन दसरथको, बन-बन राम फिरे ॥३॥

पाँचु पाण्डु अधिक सनेही, उन घर भिखो पड़े,

कीचक आन सतावे बन में, हरी बाँकी सहाय करे ॥४॥

कित फन्दा कित पारदी रे कित वो मिरग चरे,

के धरती को तोड़ो आ गयो, फन्द में आय पड़े ॥५॥

तीन लोक भावीके बस में, भावी बसन करे,

सूरदास होनी सो होगी, मूरख सोच करे ॥६॥

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Last Updated : January 22, 2014

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