हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग २१ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग २१ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग २१ Translation - भाषांतर परमार्थप्राप्तिके चार उपायकै जूझीबो कै बूझिबो दान कि काय कलेस ।चारि चारु परलोक पथ जथा जोग उपदेस ॥विवेककी आवश्यकतापात पात को सींचिबो न करु सरग तरु हेत ।कुटिल कटुक फर फरैगो तुलसी करत अचेत ॥विश्वासकी महिमागठिबँध ते परतीति बड़ि जेहिं सबको सब काज ।कहब थोर समुझब बहुत गाड़े बढ़त अनाज ॥अपनो ऐपन निज हथा तिय पूजहिं निज भीति ।फरइ सकल मन कामना तुलसी प्रीति प्रतीति ॥बरषत करषत आपु जल हरषत अरघनि भानु ।तुलसी चाहत साधु सुर सब सनेह सनमानु ॥बारह नक्षत्र व्यापारके लिये अच्छे हैंश्रुति गुन कर गुन पु जुग मृग हर रेवती सखाउ ।देहि लेहि धन धरनि धरु गएहुँ न जाइहि काउ ॥चौदह नक्षत्रोंमें हाथसे गया हुआ धन वापस नहीं मिलताऊगुन पूगुन बि अज कृ म आ भ अ मू गुनु साथ ।हरो धरो गाड़ो दियो धन फिरि चढ़इ न हाथ ॥कौन-सी तिथियाँ कब हानिकारक होती हैं ?रबि हर दिसि गुन रस नयन मुनि प्रथमादिक बार ।तिथि सब काज नसावनी होइ कुजोग बिचार ॥कौन-सा चन्द्रमा घातक समझना चाहिये ?ससि सर नव दुइ छ दस गुन मुनि फल बसु हर भानु ।मेषादिक क्रम तें गनहिं घात चंद्र जियँ जानु ॥किन-किन वस्तुओंका दर्शन शुभ है ?नकुल सुदरसनु दरसनी छेमकरी चक चाष ।दस दिसि देखत सगुन सुभ पूजहिं मन अभिलाष ॥सात वस्तुएँ सदा मङ्गलकारी हैंसुधा साधु सुरतरु सुमन सुफल सुहावनि बात ।तुलसी सीतापति भगति सगुन सुमंगल सात ॥श्रीरघुनाथजीका स्मरण सारे मङ्गलोंकी जड़ हैभरत सत्रुसूदन लखन सहित सुमिरि रघुनाथ ।करहु काज सुभ साज सब मिलिहि सुमंगल साथ ॥यात्राके समयका शुभ स्मरणराम लखन कौसिक सहित सुमिरहु करहु पयान ।लच्छि लाभ लै जगत जसु मंगल सगुन प्रमान ॥वेदकी अपार महिमाअतुलित महिमा बेद की तुलसी किएँ बिचार ।जो निंदत निंदित भयो बिदित बुद्ध अवतार ॥बुध किसान सर बेद निज मतें खेत सब सींच ।तुलसी कृषि लखि जानिबो उत्तम मध्यम नीच ॥धर्मका परित्याग किसी भी हालतमें नही करना चाहियेसहि कुबोल साँसति सकल अँगइ अनट अपमान ।तुलसी धरम न परिहरिअ कहि करि गए सुजान ॥दूसरेका हित ही करना चाहिये, अहित नहींअनहित भय परहित किएँ पर अनहित हित हानि ।तुलसी चारु बिचारु भल करिअ काज सुनि जानि ॥प्रत्येक कार्यकी सिद्धिमें तीन सहायक होते हैंपुरुषारथ पूरब करम परमेस्वर परधान ।तुलसी पैरत सरित ज्यों सबहिं काज अनुमान ॥नीतिका अवलम्बन और श्रीरामजीके चरणोंमें प्रेम ही श्रेष्ठ हैचलब नीति मग राम पग नेह निबाहब नीक ।तुलसी पहिरिअ सो बसन जो न पखारें फीक ॥दोहा चारु बिचारु चलु परिहरि बाद बिबाद ।सुकृत सीवँ स्वारथ अवधि परमारथ मरजाद ॥विवेकपूर्वक व्यवहार ही उत्तम हैतुलसी सो समरथ सुमति सुकृती साधु सयान ।जो बिचारि ब्यवहरइ जग खरच लाभ अनुमान ॥जाय जोग जग छेम बिनु तुलसी के हित राखि ।बिनुऽपराध भृगुपति नहुष बेनु बृकासुर साखि ॥नेमसे प्रेम बड़ा हैबड़ि प्रतीति गठिबंध तें बड़ो जोग तें छेम ।बड़ो सुसेवक साइँ तें बड़ो नेम तें प्रेम ॥किस-किसका परित्याग कर देना चाहियेसिष्य सखा सेवक सचिव सुतिय सिखावन साँच ।सुनि समुझि पुनि परिहरिअ पर मन रंजन पाँच ॥सात वस्तुओंको रस बिगड़नेके पहले ही छोड़ देना चाहियेनगर नारि भोजन सचिव सेवक सखा अगार ।सरस परिहरें रंग रस निरस बिषाद बिकार ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP