हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग १९ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग १९ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग १९ Translation - भाषांतर भूप-दरबारकी निन्दाबड़े बिबुध दरबार तें भूमि भूप दरबार ।जापक पूजत पेखिअत सहत निरादर भार ॥छल-कपट सर्वत्र वर्जित हैबिनु प्रपंच छल भीख भलि लहिअ न दिएँ कलेस ।बावन बलि सों छल कियो दियो उचित उपदेस ॥भलो भले सों छल किएँ जनम कनौड़ो होइ ।श्रीपति सिर तुलसी लसति बलि बावन गति सोइ ॥बिबुध काज बावन बलिहि छलो भलो जिय जानि ।प्रभुता तजि बस भे तदपि मन की गइ न गलानि ॥जगत में सब सीधोंको तंग करते हैसरल बक्र गति पंच ग्रह चपरि न चितवत काहु ।तुलसी सूधे सूर ससि समय बिडंबित राहु ॥दुष्ट-निन्दाखल उपकार बिकार फल तुलसी जान जहान ।मेढुक मर्कट बनिक बक्र कथा सत्य उपखान ॥तुलसी खल बानी मधुर सुनि समुझिअ हियँ हेरि ।राम राज बाधक भई मूढ़ मंथरा चेरि ॥जोंक सूधि मन कुटिल गति खल बिपरीत बिचारु ।अनहित सोनित सोष सो सो हित सोषनिहारु ॥नीच गुड़ि ज्यों जानिबो सुनि लखि तुलसीदास ।ढीलि दिएँ गिरि परत महि खैंचत चढ़त अकास ॥भरदर बरसत कोस सत बचै जे बूँद बराइ ।तुलसी तेउ खल बचन कर हए गए न पराइ ॥पेरत कोल्हू मेलि तिल तिली सनेही जानि ।देखि प्रीति की रीति यह अब देखिबी रिसानि ॥सहबासी काचो गिलहिं पुरजन पाक प्रबीन ।कालछेप केहि मिलि करहिं तुलसी खग मृग मीन ॥जासु भरोसें सोइऐ राखि गोद में सीस ।तुलसी तासु कुचाल तें रखवारो जगदीस ॥मार खोज लै सौंह करि करि मत लाज न त्रास ।मुए नीच ते मीच बिनु जे इन कें बिस्वास ॥परद्रोही परदार रत परधन पर अपबाद ।ते नर पावँर पापमय देह धरें मनुजाद ॥कपटीको पहचानना बड़ा कठिन हैबचन बेष क्यों जानिए मन मलीन नर नारि ।सूपनखा मृग पूतना दसमुख प्रमुख बिचारि ॥कपटी से सदा डरना चाहियेहँसनि मिलनि बोलनि मधुर कटु करतब मन माँह ।छुवत जो सकुचइ सुमति सो तुलसी तिन्ह कि छाहँ ॥कपट ही दुष्टताका स्वरूप हैकपट सार सूची सहस बाँधि बचन परबास ।कियो दुराउ चहौ चातुरीं सो सठ तुलसीदास ॥कपटी कभी सुख नहीं पाताबचन बिचार अचार तन मन करतब छल छूति ।तुलसी क्यों सुख पाइऐ अंतरजामिहि धूति ॥सारदूल को स्वाँग करि कूकर की करतूति ।तुलसी तापर चाहिऐ कीरति बिजय बिभूति ॥पाप ही दुःखका मूल हैबड़े पाप बाढ़े किए छोटे किए लजात ।तुलसी ता पर सुख चहत बिधि सों बहुत रिसात ॥अविवेक ही दुःखका मूल हैदेस काल करता करम बचन बिचार बिहीन ।ते सुरतरु तर दारिदी सुरसरि तीर मलीन ॥साहस ही कै कोप बस किएँ कठिन परिपाक ।सठ संकट भाजन भए हठि कुजाति कपि काक ॥राज करत बिनु काजहीं करहिं कुचालि कुसाजि ।तुलसी ते दसकंध ज्यों जइहैं सहित समाज ॥राज करत बिनु काजहीं ठटहिं जे कूर कुठाट ।तुलसी ते कुरुराज ज्यों जइहै बारह बाट ॥विपरीत बुद्धि बिनाशका लक्षण हैसभा सुयोधन की सकुनि सुमति सराहन जोग ।द्रोन बिदुर भीषम हरिहि कहहिं प्रपंची लोग ॥पांडु सुअन की सदसि ते नीको रिपु हित जानि ।हरि हर सम सब मानिअत मोह ग्यान की बानि ॥हित पर बढ़इ बिरोध जब अनहित पर अनुराग ।राम बिमुख बिधि बाम गति सगुन अघाइ अभाग ॥सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि ।सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ॥जोशमें आकर अनधिकार कार्य करनेवाला पछताता हैभरुहाए नट भाँट के चपरि चढ़े संग्राम ।कै वै भाजे आइहै के बाँधे परिनाम ॥समयपर कष्ट सह लेना हितकर होता हैलोक रीति फूटी सहहिं आँजी सहइ न कोइ ।तुलसी जो आँजी सहइ सो आँधरो न होइ ॥भगवान सबके रक्षक हैभागें भल ओड़ेहुँ भलो भलो न घालें घाउ ।तुलसी सब के सीस पर रखवारो रघुराउ ॥लड़ना सर्वथा त्याज्य हैसुमति बिचारहिं परिहरहिं दल सुमनहुँ संग्राम ।सकुल गए तनु बिनु भए साखी जादौ काम ॥ऊलह न जानब छोट करि कलह कठिन परिनाम ।लगति अगिनि लघु नीच गृह जरत धनिक धन धाम ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP