हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग ५ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ५ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग ५ Translation - भाषांतर श्रीरामकी कृपाराम निकाई रावरी है सबही को नीक ।जौं यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक ॥तुलसी राम जो आदर्यो खोटो खरो खरोइ ।दीपक काजर सिर धर्यो धर्यो सुधर्यो धरोइ ॥तनु बिचित्र कायर बचन अहि अहार मन घोर ।तुलसी हरि भए पच्छधर ताते कह सब मोर ॥लहइ न फूटी कौंड़िहू को चाहै केहि काज ।सो तुलसी महँगो कियो राम गरीब निवाज ॥घर घर माँगे टूक पुनि भूपति पूजे पाय ।जे तुलसी तब राम बिनु ते अब राम सहाय ॥तुलसी राम सुदीठि तें निबल होत बलवान ।बैर बालि सुग्रीव कें कहा कियो हनुमान ॥तुलसी रामहु तें अधिक राम भगत जियँ जान ।रिनिया राजा राम भे धनिक भए हनुमान ॥कियो सुसेवक धरम कपि प्रभु कृतग्य जियँ जानि ।जोरि हाथ ठाढ़े भए बरदायक बरदानि ॥भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप ।किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरुप ॥ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार ।सोइ सच्चिदानंदघन कर नर चरित उदार ॥हिरन्याच्छ भ्राता सहित मधु कैटभ बलवान ।जेहिं मारे सोइ अवतरेउ कृपासिंधु भगवान ॥सुद्ध सच्चिदानंदमय कंद भानुकुल केतु ।चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु ॥भगवान की बाललीलाबाल बिभूषन बसन बर धूरि धूसरित अंग ।बालकेलि रघुबर करत बाल बंधु सब संग ॥अनुदिन अवध बधावने नित नव मंगल मोद ।मुदित मातु पितु लोग लखि रघुबर बाल बिनोद ॥राज अजिर राजत रुचिर कोसलपालक बाल ।जानु पानि चर चरित बर सगुन सुमंगल माल ॥नाम ललित लीला ललित ललित रूप रघुनाथ ।ललित बसन भूषन ललित ललित अनुज सिसु साथ ॥राम भरत लछिमन ललित सत्रु समन सुभ नाम ।सुमिरत दसरथ सुवन सब पूजहिं सब मन काम ॥बालक कोसलपाल के सेवकपाल कृपाल ।तुलसी मन मानस बसत मंगल मंजु मराल ॥भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल ।करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहिं जगजाल ॥निज इच्छा प्रभु अवतरइ सुर महि गो द्विज लागि ।सगुन उपासक संग तहँ रहहिं मोच्छ सब त्यागि ॥प्रार्थनापरमानंद कृपायतन मन परिपूरन काम ।प्रेम भगति अनपायनी देहु हमहि श्रीराम ॥भजनकी महिमाबारि मथें घृत होइ बरु सिकता ते बरु तेल ।बिनु हरि भजन न भव तरिअ यह सिद्धांत अपेल ॥हरि माया कृत दोष गुन बिनु हरि भजन न जाहिं ।भजिअ राम सब काम तजि अस बिचारि मन माहिं ॥जो चेतन कहँ जड़ करइ जड़हि करइ चैतन्य ।अस समर्थ रघुनायकहि भजहिं जीव ते धन्य ॥श्रीरघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान ।ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन ॥लव निमेष परमानु जुग बरस कलप सर चंड ।भजसि न मन तेहि राम कहँ कालु जासु कोदंड ॥तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम ।जब लगि भजत न राम कहुँ सोकधाम तजि काम ॥बिनु सतसंग न हरिकथा तेहिं बिनु मोह न भाग ।मोह गएँ बिनु रामपद होइ न दृढ अनुराग ॥बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु ।राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न ल बिश्रामु ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP