हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग १३ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग १३ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग १३ Translation - भाषांतर ज्ञानमार्गकी कठिनताकहत कठिन समुझत कठिन साधत कठिन बिबेक ।होइ घुनाच्छर न्याय जौं पुनि प्रत्यूह अनेक ॥भगवद्भजनके अतिरिक्त और सब प्रयत्न व्यर्थ हैखल प्रबोध जग सोध मन को निरोध कुल सोध ।करहिं ते फोटक पचि मरहिं सपनेहुँ सुख न सुबोध ॥संतोषकी महिमासोरठाकोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु ।चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ ॥मायाकी प्रबलता और उसके तरनेका उपायसुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल ।अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि ॥गोस्वामीजीकी अनन्यतादोहाएक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास ।एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास ॥प्रेमकी अनन्यताके लिये चातकका उदाहरणजौं घन बरषै समय सिर जौं भरि जनम उदास ।तुलसी या चित चातकहि तऊ तिहारी आस ॥चातक तुलसी के मतें स्वातिहुँ पिऐ न पानि ।प्रेम तृषा बाढ़ति भली घटें घटैगी आनि ॥रटत रटत रसना लटी तृषा सूखि गे अंग ।तुलसी चातक प्रेम को नित नूतन रुचि रंग ॥चढ़त न चातक चित कबहुँ प्रिय पयोद के दोष ।तुलसी प्रेम पयोधि की ताते नाप न जोख ॥बरषि परुष पाहन पयद पंख करौ टुक टूक ।तुलसी परी न चाहिऐ चतुर चातकहि चूक ॥उपल बरसि गरजत तरजि डारत कुलिस कठोर ।चितव कि चातक मेघ तजि कबहुँ दूसरी ओर ॥पबि पाहन दामिनि गरज झरि झकोर खरि खीझि ।रोष न प्रीतम दोष लखि तुलसी रागहि रीझि ॥मान राखिबो माँगिबो पिय सों नित नव नेहु ।तुलसी तीनिउ तब फबैं जौ चातक मत लेहु ॥तुलसी चातक ही फबै मान राखिबो प्रेम ।बक्र बुंद लखि स्वातिहू निदरि निबाहत नेम ॥तुलसी चातक माँगनो एक एक घन दानि ।देत जो भू भाजन भरत लेत जो घूँटक पानि ॥तीनि लोक तिहुँ काल जस चातक ही के माथ ।तुलसी जासु न दीनता सुनी दूसरे नाथ ॥प्रीति पपीहा पयद की प्रगट नई पहिचानि ।जाचक जगत कनाउड़ो कियो कनौड़ा दानि ॥नहिं जाचत नहिं संग्रही सीस नाइ नहिं लेइ ।ऐसे मानी मागनेहि को बारिद बिन देइ ॥को को न ज्यायो जगत में जीवन दायक दानि ।भयो कनौड़ो जाचकहि पयद प्रेम पहिचानि ॥साधन साँसति सब सहत सबहि सुखद फल लाहु ।तुलसी चातक जलद की रीझि बूझि बुध काहु ॥चातक जीवन दायकहि जीवन समयँ सुरीति ।तुलसी अलख न लखि परै चातक प्रीति प्रतीति ॥जीव चराचर जहँ लगे है सब को हित मेह ।तुलसी चातक मन बस्यो घन सों सहज सनेह ॥डोलत बिपुल बिहंग बन पिअत पोखरनि बारि ।सुजस धवल चातक नवल तुही भुवन दस चारि ॥मुख मीठे मानस मलिन कोकिल मोर चकोर ।सुजस धवल चातक नवल रह्यो भुवन भरि तोर ॥बास बेस बोलनि चलनि मानस मंजु मराल ।तुलसी चातक प्रेम की कीरति बिसद बिसाल ॥प्रेम न परखिअ परुषपन पयद सिखावन एह ।जग कह चातक पातकी ऊसर बरसै मेह ॥होइ न चातक पातकी जीवन दानि न मूढ़ ।तुलसी गति प्रहलाद की समुझि प्रेम पथ गूढ़ ॥गरज आपनी सबन को गरज करत उर आनि ।तुलसी चातक चतुर भो जाचक जानि सुदानि ॥चरग चंगु गत चातकहि नेम प्रेम की पीर ।तुलसी परबस हाड़ पर परिहैं पुहुमी नीर ॥बध्यो बधिक पर्यो पुन्य जल उलटि उठाई चोंच ।तुलसी चातक प्रेमपट मरतहुँ लगी न खोंच ॥अंड फोरि कियो चेटुवा तुष पर्यो नीर निहारि ।गहि चंगुल चातक चतुर डार्यो बाहिर बारि ॥तुलसी चातक देत सिख सुतहि बारहीं बार ।तात न तर्पन कीजिऐ बिना बारिधर धार ॥सोरठाजिअत न नाई नारि चातक घन तजि दूसरहि ।सुरसरिहू को बारि मरत न माँगेउ अरध जल ॥सुनु रे तुलसीदास प्यास पपीहहि प्रेम की ।परिहरि चारिउ मास जौ अँचवै जल स्वाति को ॥जाचै बारह मास पिऐ पपीहा स्वाति जल ।जान्यो तुलसीदास जोगवत नेही नेह मन ॥दोहातुलसीं के मत चातकहि केवल प्रेम पिआस ।पिअत स्वाति जल जान जग जाँचत बारह मास ॥आलबाल मुकुताहलनि हिय सनेह तरु मूल ।होइ हेतु चित चातकहि स्वाति सलिलु अनुकूल ॥उष्न काल अरु देह खिन मन पंथी तन ऊख ।चातक बतियाँ न रुचीं अन जल सींचे रूख ॥अन जल सींचे रूख की छाया तें बरु घाम ।तुलसी चातक बहुत हैं यह प्रबीन को काम ॥एक अंग जो सनेहता निसि दिन चातक नेह ।तुलसी जासों हित लगै वहि अहार वहि देह ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP