तुलसीदास कृत दोहावली - भाग २०

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


क्षमाका महत्व

छमा रोष के दोष गुन सुनि मनु मानहिं सीख ।
अबिचल श्रीपति हरि भए भूसुर लहै न भीख ॥
कौरव पांडव जानिऐ क्रोध छमा के सीम ।
पाँचहि मारि न सौ सके सयौ सँघारे भीम ॥

क्रोधकी अपेक्षा प्रेमके द्वारा वश करना ही जीत है

बोल न मोटे मारिऐ मोटी रोटी मारु ।
जीति सहस सम हारिबो जीतें हारि निहारु ॥
जो परि पायँ मनाइए तासों रूठि बिचारि ।
तुलसी तहाँ न जीतिऐ जहँ जीतेहूँ हारि ॥
जूझे ते भल बूझिबो भली जीति तें हार ।
डहकें तें डहकाइबो भलो जो करिअ बिचार ॥
जा रिपु सों हारेहुँ हँसी जिते पाप परितापु ।
तासों रारि निवारिऐ समयँ सँभारिअ आपु ॥
जो मधु मरै न मारिऐ माहुर देइ सो काउ ।
जग जिति हारे परसुधर हारि जिते रघुराउ ॥
बैर मूल हर हित बचन प्रेम मूल उपकार ।
दो हा सुभ संदोह सो तुलसी किएँ बिचार ॥
रोष न रसना खोलिऐ बरु खोलिअ तरवारि ।
सुनत मधुर परिनाम हित बोलिअ बचन बिचारि ॥
मधुर बचन कटु बोलिबो बिनु श्रम भाग अभाग ।
कुहू कुहू कलकंठ रव का का कररत काग ॥
पेट न फूलत बिनु कहें कहत न लागइ ढेर ।
सुमति बिचारें बोलिऐ समुझि कुफेर सुफेर ॥

वीतराग पुरुषोंकी शरण ही जगत के जंजालसे बचनेका उपाय है

छिद्यो न तरुनि कटाच्छ सर करेउ न कठिन सनेहु ।
तुलसी तिन की देह को जगत कवच करि लेहु ॥

शूरवीर करनी करते है,कहते नहीं

सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु ।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ॥

अभिमान के बचन कहना अच्छा नहीं

बचन कहे अभिमान के पारथ पेखत सेतु ।
प्रभु तिय लूटत नीच भर जय न मीचु तेहिं हेतु ॥

दीनोंकी रक्षा करनेवाला सदा बिजयी होता है

राम लखन बिजई भए बनहुँ गरीब निवाज ।
मुखर बालि रावन गए घरहीं सहित समाज ॥

नीतिका पालन करनेवालेके सभी सहायक बन जाते हैं

खग मृग मीत पुनीत किय बनहुँ राम नयपाल ।
कुमति बालि दसकंठ घर सुहद बंधु कियो काल ॥

सराहनेयोग्य कौन है

लखइ अघानो भूख ज्यों लखइ जीतिमें हारि ।
तुलसी सुमति सराहिऐ मग पग धरइ बिचारि ॥

अवसर चूक जानेसे बड़ी हानि होती है

लाभ समय को पालिबो हानि समय की चूक ।
सदा बिचारहिं चारुमति सुदिन कुदिन दिन दूक ॥

समयका महत्व

सिंधु तरन कपि गिरि हरन काज साइँ हित दोउ ।
तुलसी समयहिं सब बड़ो बूझत कहुँ कोउ कोउ ॥

तुलसी मीठी अमी तें मागी मिलै जो मीच ।
सुधा सुधाकर समय बिनु काललकूट तें नीच ॥

विपत्तिकालके मित्र कौन है ?

तुलसी असमय के सखा धीरज धरम बिबेक ।
साहित साहस सत्यब्रत राम भरोसो एक ॥
समरथ कोउ न राम सों तीय हरन अपराधु ।
समयहिं साधे काज सब समय सराहहिं साधु ॥
तुलसी तीरहु के चलें समय पाइबी थाह ।
धाइज न जाइ थहाइबी सर सरिता अवगाह ॥

होनहारकी प्रबलता

तुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ ।
आपुनु आवइ ताहि पै ताहि तहाँ लै जाइ ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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