हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग १४ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग १४ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग १४ Translation - भाषांतर एकाङ्गी अनुरागके अन्य उदाहरणबिबि रसना तनु स्याम है बंक चलनि बिष खानि ।तुलसी जस श्रवननि सुन्यो सीस समरप्यो आनि ॥मृगका उदाहरणआपु ब्याध को रूप धरि कुहौ कुरंगहि राग ।तुलसी जो मृग मन मुरै परै प्रेम पट दाग ॥सर्पका उदाहरणतुलसी मनि निज दुति फनिहि ब्याधिहि देउ दिखाइ ।बिछुरत होइ नब आँधरो ताते प्रेम न जाइ ॥कमलका उदाहरणजरत तुहिन लखि बनज बन रबि दै पीठि पराउ ।उदय बिकस अथवत सकुच मिटै न सहज सुभाउ ॥मछलीका उदाहरणदेउ आपनें हाथ जल मीनहि माहुर घोरि ।तुलसी जिऐ जो बारि बिनु तौ तु देहि कबि खोरि ॥मकर उरग दादुर कमठ जल जीवन जल गेह ।तुलसी एकै मीन को है साँचिलो सनेह ॥मयूरशिखा बूटीका उदाहरणतुलसी मिटे न मरि मिटेहुँ साँचो सहज सनेह ।मोरसिखा बिनु मूरिहूँ पलुहत गरजत मेह ॥सुलभ प्रीति प्रीतम सबै कहत करत सब कोइ ।तुलसी मीन पुनीत ते त्रिभुवन बड़ो न कोइ ॥अनन्यताकी महिमातुलसी जप तप नेम ब्रत सब सबहीं तें होइ ।लहै बड़ाई देवता इष्टदेव जब होइ ॥गाढ़े दिनका मित्र ही मित्र हैकुदिन हितू सो हित सुदिन हित अनहित किन होइ ।ससि छबि हर रबि सदन तउ मित्र कहत सब कोइ ॥बराबरीका स्नेह दुःखदायक होता हैकै लघुकै बड़ मीत भल सम सनेह दुख सोइ ।तुलसी ज्यों घृत मधु सरिस मिलें महाबिष होइ ॥मित्रतामें छल बाधक हैमान्य मीत सों सुख चहैं सो न छुऐ छल छाहँ ।ससि त्रिसंकु कैकेइ गति लखि तुलसी मन माहँ ॥कहिअ कठिन कृत कोमलहुँ हित हठि होइ सहाइ ।पलक पानि पर ओड़िअत समुझि कुघाइ सुघाइ ॥वैर और प्रेम अंधे होते हैतुलसी बैर सनेह दोउ रहित बिलोचन चारि ।सुरा सेवरा आदरहिं निंदहिं सुरसरि बारि ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP