तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ३

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


रामविमुखताका कुफल

तुलसी श्रीरघुबीर तजि करै भरोसो और ।
सुख संपति की का चली नरकहुँ नाहीं ठौर ॥
तुलसी परिहरि हरि हरहि पाँवर पूजहिं भूत ।
अंत फजीहत होहिंगे गनिका के से पूत ॥
सेये सीता राम नहिं भजे न संकर गौरि ।
जनम गँवायो बादिहीं परत पराई पौरि ॥
तुलसी हरि अपमान तें होइ अकाज समाज ।
राज करत रज मिलि गए सदल सकुल कुरुराज ॥
तुलसी रामहि परिहरें निपट हानि सुन ओझ ।
सुरसरि गत सोई सलिल सुरा सरिस गंगोझ ॥
राम दूरि माया बढ़ति घटति जानि मन माँह ।
भूरि होति रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छाँह ॥
साहिब सीतानाथ सों जब घटिहै अनुराग ।
तुलसी तबहीं भालतें भभरि भागिहैं भाग ॥
करिहौ कोसलनाथ तजि जबहिं दूसरी आस ।
जहाँ तहाँ दुख पाइहौं तबहीं तुलसीदास ॥
बिंधि न ईंधन पाइऐ सागर जुरै न नीर ।
परै उपास कुबेर घर जो बिपच्छ रघुबीरो ॥
बरसा को गोबर भयो को चहै को करै प्रीति ।
तुलसी तू अनुभवहि अब राम बिमुख की रीति ॥
सबहिं समरथहि सुखद प्रिय अच्छम प्रिय हितकारि ।
कबहुँ न काहुहि राम प्रिय तुलसी कहा बिचारि ॥
तुलसी उद्यम करम जुग जब जेहि राम सुडीठि ।
होइ सुफल सोइ ताहि सब सनमुख प्रभु तन पीठि ॥
राम कामतरु परिहरत सेवत कलि तरु ठूँठ ।
स्वारथ परमारथ चहत सकल मनोरथ झूँठ ॥

कल्याणका सुगम उपाय

निज दूषन गुन राम के समुझें तुलसीदास ।
होइ भलो कलिकाल हूँ उभय लोक अनयास ॥
कै तोहि लागहिं राम प्रिय कै तू प्रभु प्रिय होहि ।
दुइ में रुचै जो सुगम सो कीबे तुलसी तोहि ॥
तुलसी दुइ महँ एक ही खेल छाँड़ि छल खेलु ।
कै करु ममता राम सों के ममता परहेलु ॥

श्रीरामजीकी प्राप्तिका सुगम उपाय

निगम अगम साहेब सुगम राम साँचिली चाह ।
अंबु असन अवलोकिअत सुलभ सबै जग माँह ॥
सनमुख आवत पथिक ज्यों दिएँ दाहिनो बाम ।
तैसोइ होत सु आप को त्यों ही तुलसी राम ॥

रामप्रेमके लिये वैराग्यकी आवश्यकता

राम प्रेम पथ पेखिऐ दिएँ बिषय तन पीठि ।
तुलसी केंचुरि परिहरें होत साँपहू दीठि ॥
तुलसी जौ लौं बिषय की मुधा माधुरी मीठि ।
तौ लौं सुधा सहस्त्र सम राम भगति सुठि सीठि ॥

शरणागतिकी महिमा

जैसो तैसो रावरो केवल कोसलपाल ।
तौ तुलसी को है भलो तिहूँ लोक तिहुँ काल ॥
है तुलसी कें एक गुन अवगुन निधि कहैं लोग ।
भलो भरोसो रावरो राम रीझिबे जोग ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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