हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग ३ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ३ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग ३ Translation - भाषांतर रामविमुखताका कुफलतुलसी श्रीरघुबीर तजि करै भरोसो और ।सुख संपति की का चली नरकहुँ नाहीं ठौर ॥तुलसी परिहरि हरि हरहि पाँवर पूजहिं भूत ।अंत फजीहत होहिंगे गनिका के से पूत ॥सेये सीता राम नहिं भजे न संकर गौरि ।जनम गँवायो बादिहीं परत पराई पौरि ॥तुलसी हरि अपमान तें होइ अकाज समाज ।राज करत रज मिलि गए सदल सकुल कुरुराज ॥तुलसी रामहि परिहरें निपट हानि सुन ओझ ।सुरसरि गत सोई सलिल सुरा सरिस गंगोझ ॥राम दूरि माया बढ़ति घटति जानि मन माँह ।भूरि होति रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छाँह ॥साहिब सीतानाथ सों जब घटिहै अनुराग ।तुलसी तबहीं भालतें भभरि भागिहैं भाग ॥करिहौ कोसलनाथ तजि जबहिं दूसरी आस ।जहाँ तहाँ दुख पाइहौं तबहीं तुलसीदास ॥बिंधि न ईंधन पाइऐ सागर जुरै न नीर ।परै उपास कुबेर घर जो बिपच्छ रघुबीरो ॥बरसा को गोबर भयो को चहै को करै प्रीति ।तुलसी तू अनुभवहि अब राम बिमुख की रीति ॥सबहिं समरथहि सुखद प्रिय अच्छम प्रिय हितकारि ।कबहुँ न काहुहि राम प्रिय तुलसी कहा बिचारि ॥तुलसी उद्यम करम जुग जब जेहि राम सुडीठि ।होइ सुफल सोइ ताहि सब सनमुख प्रभु तन पीठि ॥राम कामतरु परिहरत सेवत कलि तरु ठूँठ ।स्वारथ परमारथ चहत सकल मनोरथ झूँठ ॥कल्याणका सुगम उपायनिज दूषन गुन राम के समुझें तुलसीदास ।होइ भलो कलिकाल हूँ उभय लोक अनयास ॥कै तोहि लागहिं राम प्रिय कै तू प्रभु प्रिय होहि ।दुइ में रुचै जो सुगम सो कीबे तुलसी तोहि ॥तुलसी दुइ महँ एक ही खेल छाँड़ि छल खेलु ।कै करु ममता राम सों के ममता परहेलु ॥श्रीरामजीकी प्राप्तिका सुगम उपायनिगम अगम साहेब सुगम राम साँचिली चाह ।अंबु असन अवलोकिअत सुलभ सबै जग माँह ॥सनमुख आवत पथिक ज्यों दिएँ दाहिनो बाम ।तैसोइ होत सु आप को त्यों ही तुलसी राम ॥रामप्रेमके लिये वैराग्यकी आवश्यकताराम प्रेम पथ पेखिऐ दिएँ बिषय तन पीठि ।तुलसी केंचुरि परिहरें होत साँपहू दीठि ॥तुलसी जौ लौं बिषय की मुधा माधुरी मीठि ।तौ लौं सुधा सहस्त्र सम राम भगति सुठि सीठि ॥शरणागतिकी महिमाजैसो तैसो रावरो केवल कोसलपाल ।तौ तुलसी को है भलो तिहूँ लोक तिहुँ काल ॥है तुलसी कें एक गुन अवगुन निधि कहैं लोग ।भलो भरोसो रावरो राम रीझिबे जोग ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP