हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग १८ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग १८ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग १८ Translation - भाषांतर नीच पुरुषकी नीचताप्रभु सनमुख भएँ नीच नर होत निपट बिकराल ।रबिरुख लखि दरपन फटिक उगिलत ज्वालाजाल ॥सज्जनकी सज्जनताप्रभु समीप गत सुजन जन होत सुखद सुबिचार ।लवन जलधि जीवन जलद बरषत सुधा सुबारि ॥नीच निरावहिं निरस तरु तुलसी सींचहिं ऊख ।पोषत पयद समान सब बिष पियूष के रूख ॥बरषि बिस्व हरषित करत हरत ताप अघ प्यास ।तुलसी दोष न जलद को जो जल जरै जवास ॥अमर दानि जाचक मरहिं मरि मरि फिरि फिरि लेहिं ।तुलसी जाचक पातकी दातहि दूषन देहिं ॥नीचनिन्दालखि गयंद लै चलत भजि स्वान सुखानो हाड़ ।गज गुन मोल अहार बल महिमा जान कि राड़ ॥सज्जनमहिमाकै निदरहुँ कै आदरहुँ सिंघहि स्वान सिआर ।हरष बिषाद न केसरिहि कुंजर गंजनिहार ॥दुर्जनोका स्वभावठाढ़ो द्वार न दै सकैं तुलसी जे नर नीच ।निंदहि बलिल हरिचंद को का कियो करन दधीच ॥नीचकी निन्दासे उत्तम पुरुषोंका कुछ नहीं घटताईस सीस बिलसत बिमल तुलसी तरल तरंग ।स्वान सरावग के कहें लघुता लहै न गंग ॥तुलसी देवल देव को लागे लाख करोरि ।काक अभागें हगि भर्यो महिमा भई कि थोरि ॥गुणोंका ही मूल्य है,दूसरोंके आदर-अनादरका नहींनिज गुन घटत न नाग नग परखि परिहरत कोल ।तुलसी प्रभु भूषन किए गुंजा बढ़े न मोल ॥श्रेष्ठ पुरुषोंकी महिमाको कोई नहीं पा सकताराकापति षोड़स उअहिं तारा गन समुदाइ ।सकल गिरिन्ह दव लाइअ बिनु रबि राति न जाइ ॥दुष्ट पुरुषोंद्वारा की हुई निन्दा-स्तुतिका कोई मूल्य नहीं हैभलो कहहिं बिनु जानेहूँ बिनु जानें अपबाद ।ते नर गादुर जानि जियँ करिय न हरष बिषाद ॥डाह करनेवालोंका कभी कल्याण नहीं होतापर सुख संपति देखि सुनि जरहिं जे जड़ बिनु आगि ।तुलसी तिन के भागते चलै भलाई भागि ॥दूसरोंकी निन्दा करनेवालोंका मुहँ काला होता हैतुलसी जे कीरति चहहिं पर की कीरति खोइ ।तिनके मुहँ मसि लागिहैं मिटहि न मरिहै धोइ ॥मिथ्या अभिमानका दुष्परिणामतन गुन धन महिमा धरम तेहि बिनु जेहि अभिमान ।तुलसी जिअत बिडंबना परिनामहु गत जान ॥नीचा बनकर रहना ही श्रेष्ठ हैसासु ससुर गुरु मातु पितु प्रभु भयो चहै सब कोइ ।होनी दूजी ओर को सुजन सराहिअ सोइ ॥सज्जन स्वाभाविक ही पूजनीय होते हैसठ सहि साँसति पति लहत सुजन कलेस न कायँ ।गढ़ि गुढ़ि पाहन पूजिऐ गंडकि सिला सुभायँ ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP