तुलसीदास कृत दोहावली - भाग १

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


ध्यान

राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर ।
ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरु तुलसी तोर ॥
सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास ।
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास ॥
पंचबटी बट बिटप तर सीता लखन समेत ।
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत ॥

राम-नाम-जपकी महिमा

चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत ।
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत ॥
पय अहार फल खाइ जपु राम नाम षट मास ।
सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास ॥
राम नाम मनीदीप धरु जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहरेहुँ जौं चाहसि उजियार ॥
हियँ निर्गुन नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम ।
मनहुँ पुरट संपुट लसत तुलसी ललित ललाम ॥
सगुन ध्यान रुचि सरस नहिं निर्गुन मन ते दूरि ।
तुलसी सुमिरहु रामको नाम सजीवन मूरि ॥
एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ ।
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ॥
नाम राम को अंक है सब साधन हैं सून ।
अंक गएँ कछु हाथ नहिं अंक रहें दस गून ॥
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥
राम नाम जपि जीहँ जन भए सुकृत सुखसालि ।
तुलसी इहाँ जो आलसी गयो आजु की कालि ॥
नाम गरीबनिवाज को राज देत जन जानि ।
तुलसी मन परिहरत नहिं घुर बिनिआ की बानि ॥
कासीं बिधि बसि तनु तजें हठि तनु तजें प्रयाग ।
तुलसी जो फल सो सुलभ राम नाम अनुराग ॥
मीठो अरु कठवति भरो रौंताई अरु छैम ।
स्वारथ परमारथ सुलभ राम नाम के प्रेम ॥
राम नाम सुमिरत सुजस भाजन भए कुजाति ।
कुतरुक सुरपुर राजमग लहत भुवन बिख्याति ॥
स्वारथ सुख सपनेहुँ अगम परमारथ न प्रबेस ।
राम नाम सुमिरत मिटहिं तुलसी कठिन कलेस ॥
मोर मोर सब कहँ कहसि तू को कहु निज नाम ।
कै चुप साधहि सुनि समुझि कै तुलसी जपु राम ॥
हम लखि लखहि हमार लखि हम हमार के बीच ।
तुलसी अलखहि का लखहि राम नाम जप नीच ॥
राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस ।
बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास ॥
तुलसी हठि हठि कहत नित चित सुनि हित करि मानि ।
लाभ राम सुमिरन बड़ो बड़ी बिसारें हानि ॥
बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु ।
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु ॥

प्रीति प्रतीति सुरीति सों राम राम जपु राम ।
तुलसी तेरो है भलो आदि मध्य परिनाम ॥
दंपति रस रसना दसन परिजन बदन सुगेह ।
तुलसी हर हित बरन सिसु संपति सहज सनेह ॥
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास ।
रामनाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥
राम नाम नर केसरी कनककसिपु कलिकाल ।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥
राम नाम कलि कामतरु राम भगति सुरधेनु ।
सकल सुमंगल मूल जग गुरुपद पंकर रेनु ॥
राम नाम कलि कामतरु सकल सुमंगल कंद ।
सुमिरत करतल सिद्धि सब पग पग परमानंद ॥
जथा भूमि सब बीजमय नखत निवास अकास ।
राम नाम सब धरममय जानत तुलसीदास ॥
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन ।
नाम सुप्रेम पियूष हृद तिन्हहुँ किए मन मीन ॥

ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि ।
राम चरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि ॥
सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ ।
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ ॥
राम नाम पर नाम तें प्रीति प्रतीति भरोस ।
सो तुलसी सुमिरत सकल सगुन सुमंगल कोस ॥
लंक बिभीषन राज कपि पति मारुति खग मीच ।
लही राम सों नाम रति चाहत तुलसी नीच ॥
हरन अमंगल अघ अखिल करन सकल कल्यान ।
रामनाम नित कहत हर गावत बेद पुरान ॥

तुलसी प्रीति प्रतीति सों राम नाम जप जाग ।
किएँ होइ बिधि दाहिनो देइ अभागेहि भाग ॥
जल थल नभ गति अमित अति अग जग जीव अनेक ।
तुलसी तो से दीन कहँ राम नाम गति एक ॥
राम भरोसो राम बल राम नाम बिस्वास ।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल माँगत तुलसीदास ॥
राम नाम रति राम गति राम नाम बिस्वास ।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल दुहुँ दिसि तुलसीदास ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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