तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ७

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


रामप्रेमकी प्राप्ति सुगम उपाय

सूधे मन सूधे बचन सूधी सब करतूति ।
तुलसी सूधी सकल बिधि रघुबर प्रेम प्रसूति ॥

रामप्राप्तिमें बाधक

बेष बिसद बोलनि मधुर मन कटु करम मलीन ।
तुलसी राम न पाइऐ भएँ बिषय जल मीन ॥
बचन बेष तें जो बनइ सो बिगरइ परिनाम ।
तुलसी मन तें जो बनइ बनी बनाई राम ॥

राम अनुकूलतामें ही कल्याण है

नीच मीचु लै जाइ जो राम रजायसु पाइ ।
तौ तुलसी तेरो भलो न तु अनभलो अघाइ ॥

श्रीरामकी शरणागतवत्सलता

जाति हीन अघ जन्म महि मुक्त कीन्हि असि नारि ।
महामंद मन सुख चहसि ऐसे प्रभुहि बिसारि ॥
बंधु बधू रत कहि कियो बचन निरुत्तर बालि ।
तुलसी प्रभु सुग्रीव की चितइ न कछू कुचालि ॥
बालि बली बलसालि दलि सखा कीन्ह कपिराज ।
तुलसी राम कृपालु को बिरद गरीब निवाज ॥
कहा बिभीषन लै मिल्यो कहा बिगार्यो बालि ।
तुलसी प्रभु सरनागतहि सब दिन आए पालि ॥
तुलसी कोसलपाल सो को सरनागत पाल ।
भज्यो बिभीषन बंधु भय भंज्यो दारिद काल ॥
कुलिसहु चाहि कठोर अति कोमल कुसुमहु चाहि ।
चित्त खगेस राम कर समुझि परइ कहु काहि ॥
बलकल भूषन फल असन तृन सज्या द्रुम प्रीति ।
तिन्ह समयन लंका दई यह रघुबर की रीति ॥
जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ ॥
अबिचल राज बिभीषनहि दीन्ह राम रघुराज ।
अजहुँ बिराजत लंक पर तुलसी सहित समाज ॥
कहा बिभीषन लै मिल्यो कहा दियो रघुनाथ ।
तुलसी यह जाने बिना मूढ़ मीजिहैं हाथ ॥
बैरि बंधु निसिचर अधम तज्यो न भरें कलंक ।
झूठें अघ सिय परिहरी तुलसी साइँ ससंक ॥
तेहि समाज कियो कठिन पन जेहिं तौल्यो कैलास ।
तुलसी प्रभु महिमा कहौं सेवक को बिस्वास ॥
सभा सभासद निरखि पट पकरि उठायो हाथ ।
तुलसी कियो इगारहों बसन बेस जदुनाथ ॥
त्राहि तीनि कह्यो द्रौपदी तुलसी राज समाज ।
प्रथम बढ़े पट बिय बिकल चहत चकित निज काज ॥
सुख जीवन सब कोउ चहत सुख जीवन हरि हाथ ।
तुलसी दाता मागनेउ देखिअत अबुध अनाथ ॥
कृपन देइ पाइअ परो बिनु साधें सिधि होइ ।
सीतापति सनमुख समुझि जौ कीजै सुभ सोइ ॥
दंडक बन पावन करन चरन सरोज प्रभाउ ।
ऊसर जामहिं खल तरहिं होइ रंक ते राउ ॥
बिनहिं रितु तरुबर फरत सिला द्रवहि जल जोर ।
राम लखन सिय करि कृपा जब चितवत जेहि ओर ॥
सिला सुतिय भइ गिरि तरे मृतक जिए जग जान ।
राम अनुग्रह सगुन सुभ सुलभ सकल कल्यान ॥
सिला साप मोचन चरन सुमिरहु तुलसीदास ।
तजहु सोच संकट मिटिहिं पूजहि मनकी आस ॥
मुए जिआए भालु कपि अवध बिप्रको पूत ।
सुमिरहु तुलसी ताहि तू जाको मारुति दूत ॥

प्रार्थना

काल करम गुन दोर जग जीव तिहारे हाथ ।
तुलसी रघुबर रावरो जानु जानकीनाथ ॥
रोग निकर तनु जरठपनु तुलसी संग कुलोग ।
राम कृपा लै पालिऐ दीन पालिबे जोग ॥
मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर ।
अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर ॥
भव भुअंग तुलसी नकुल डसत ग्यान हरि लेत ।
चित्रकूट एक औषधी चितवत होत सचेत ॥
हौंहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास ।
साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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