हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग ११ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ११ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग ११ Translation - भाषांतर काशीमहिमासोरठामुक्ति जन्म महि जानि ग्यान खानि अघ हानि कर ।जहँ बस संभु भवानि सो कासी सेइअ कस न ॥शंकरमहिमाजरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय ।तेहि न भजसि मन मंद को कृपालु संकर सरिस ॥शंकरजीसे प्रार्थनादोहाबासर ढासनि के ढका रजनीं चहुँ दिसि चोर ।संकर निज पुर राखिऐ चितै सुलोचन कोर ॥अपनी बीसीं आपुहीं पुरिहिं लगाए हाथ ।केहि बिधि बिनती बिस्व की करौं बिस्व के नाथ ॥भगवल्लीलाकी दुर्ज्ञेयताऔर करै अपराधु कोउ और पाव फल भोगु ।अति बिचित्र भगवंत गति को जग जानै जोगु ॥प्रेममें प्रपञ्च बाधक हैप्रेम सरीर प्रपंच रुज उपजी अधिक उपाधि ।तुलसी भली सुबैदई बेगि बाँधिऐ ब्याधि ॥अभिमान ही बन्धनका मूल हैहम हमार आचार बड़ भूरि भार धरि सीस ।हठि सठ परबस परत जिमि कीर कोस कृमि कीस ॥जीव और दर्पणके प्रतिबिम्बकी समानताकेहिं मग प्रबिसति जाति केहिं कहु दरपनमें छाहँ ।तुलसी ज्यों जग जीव गति करि जीव के नाहँ ॥भगवन्मायाकी दुर्ज्ञेयतासुखसागर सुख नींद बस सपने सब करतार ।माया मायानाथ की को जग जाननिहार ॥जीवकी तीन दशाएँजीव सीव सम सुख सयन सपनें कछु करतूति ।जागत दीन मलीन सोइ बिकल बिषाद बिभूति ॥सृष्टि स्वप्नवत हैसपनें होइ भिखारि नृपु रंकु नाकपति होइ ।जागें लाभु न हानि कछु तिमि प्रपंच जियँ जोइ ॥हमारी मृत्यु प्रतिक्षण हो रही हैतुलसी देखत अनुभवत सुनत न समुझत नीच ।चपरि चपेटे देत नित केस गहें कर मीच ॥कालकी करतूतकरम खरी कर मोह थल अंक चराचर जाल ।हनत गुनत गनि गुनि हनत जगत ज्यौतिषी काल ॥इन्द्रियोंकी सार्थकताकहिबे कहँ रसना रची सुनिबे कहँ किये कान ।धरिबे कहँ चित हित सहित परमारथहि सुजान ॥सगुणके बिना निर्गुणका निरूपण असम्भव हैग्यान कहै अग्यान बिनु तम बिनु कहै प्रकास ।निरगुन कहै जो सगुन बिनु सो गुरु तुलसीदास ॥निर्गुणकी अपेक्षा सगुण अधिक प्रामाणिक हैअंक अगुन आखर सगुन समुझिअ उभय प्रकार ।खोएँ राखें आपु भल तुलसी चारु बिचार ॥विषयासक्तिका नाश हुए बिना ज्ञान अधूरा हैपरमारथ पहिचानि मति लसति बिषयँ लपटानि ।निकसि चिता तें अधजरित मानहुँ सती परानि ॥विषयासक्त साधुकी अपेक्षा वैराग्यवान गृहस्थ अच्छा हैसीस उधारन किन कहेउ बरजि रहे प्रिय लोग ।घरहीं सती कहावती जरती नाह बियोग ॥साधुके लिये पूर्ण त्यागकी आवश्यकताखरिया खरी कपूर सब उचित न पिय तिय त्याग ।कै खरिया मोहि मेलि कै बिमल बिबेक बिराग ॥भगवतप्रेममें आसक्ति बाधक है, गृहस्थाश्रम नहींघर कीन्हें घर जात है घर छाँड़े घर जाइ ।तुलसी घर बन बीचहीं राम प्रेम पुर छाइ ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP