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श्रीराम स्तुति १०

विनय पत्रिका - श्रीराम स्तुति १०

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


देव

दनुजसूदन दयासिंधु, दंभापहन दहन दुर्दोष, दर्पापहर्त्ता ।

दुष्टतादमन, दमभवन, दुःखौघहर दुर्ग दुर्वासना नाश कर्त्ता ॥१॥

भूरिभूषण, भानुमंत, भगवंत, भवभंजनाभयद, भुवनेश भारी ।

भावनातीत, भववंद्य, भवभक्तहित, भूमिउद्धरण, भूधरण - धारी ॥२॥

वरद, वनदाभ, वागीश, विश्वातमा, विरज, वैकुण्ठ - मन्दिर - विहारी ।

व्यापक व्योम, वंदारु, वामन, विभो, ब्रह्मविद, ब्रह्म चिंतापहारी ॥३॥

सहज सुन्दर, सुमुख, सुमन, शुभ सर्वदा, शुद्ध सर्वज्ञ, स्वछन्दचारी ।

सर्वकृत, सर्वभृत, सर्वजित, सर्वहित, सत्य - संकल्प, कल्पांतकारी ॥४॥

नित्य, निर्मोह, निर्गुण, निरंजन, निजानंद, निर्वाण, निर्वाणदाता ।

निर्भरानंद, निःकंप, निः सीम, निर्मुक्त, निरुपाधि, निर्मम, विधाता ॥५॥

महामंगलमूल, मोद - महिमायतन, मुग्ध - मधु - मथन, मानद, अमानी ।

मदनमर्दन, मदातीत, मायारहित, मंजु मानाथ, पाथोजपानी ॥६॥

कमल - लोचन, कलाकोश, कोदंडधर, कोशलाधीश, कल्याणराशी ।

यातुधान प्रचुर मत्तकरि - केसरी, भक्तमन - पुण्य - आरण्यवासी ॥७॥

अनघ, अद्वैत, अनवद्य, अव्यक्त, अज, अमित, अविकार, आनंदसिंधो ।

अचल, अनिकेत, अविरल, अनामय, अनारंभ, अंभोदनादहन - बंधो ॥८॥

दासतुलसी खेदखिन्न, आपन्न इह, शोकसंपन्न अतिशय सभीतं ।

प्रणतपालक राम, परम करुणाधाम, पाहि मामुर्विपति, दुर्विनीतं ॥९॥

भावार्थः-- हे श्रीरामजी ! आप दानवोंके नाशकर्ता, दयाके समुद्र, दम्भ दूर करनेवाले, दुष्कृतोंको भस्म करनेवाले और दर्पको हरनेवाले हैं; आप दुष्टताका नाश करनेवाले, दमके स्थान अर्थात् जितेन्द्रियोंमें श्रेष्ठ, दुःखोंके समूहको हरनेवाले और कठिन तथा बुरी वासनाओंके विनाशक हैं ॥१॥

आप अनेक अलंकार धारण किये, सूर्यके समान प्रकाशमान, ऐश्वर्यादि छः दिव्य गुणोंसे युक्त, संसारसे छुड़ानेवाले, अभय दान देनेवाले और सबसे बड़े जगदीश्वर हैं । आप मन - बुद्धिकी भावनाओंसे परे, शिवजीसे वन्दनीय, शिवभक्तोंके हितकारी, भूमिका उद्धार करनेवाले और ( गोवर्द्धन ) पर्वतको धारण करनेवाले हैं ॥२॥

हे वरद ! आपका शरीर मेघके समान श्याम है ! आप वाणीके अधीश्वर, विश्वके आत्मा, रागरहित और वैकुण्ठ - मन्दिरमें नित्य विहार करनेवाले हैं । आप आकाशके समान सर्वत्र व्याप्त हैं, सबसे वन्दनीय, वामनरुपधारी सर्वसमर्थ, ब्रह्मवेता, ब्रह्मरुप और चिन्ताओंको दूर करनेवाले हैं ॥३॥

आप स्वभावसे ही सुन्दर, सुन्दर मुखवाले और शुद्ध मनवाले हैं । आप सदा शुभस्वरुप, निर्मल, सर्वज्ञ और स्वतन्त्र आचरण करनेवाले हैं । आप सब कुछ करनेवाले, सबका भरण - पोषण करनेवाले, सबको जीतनेवाले, सबके हितकारी, सत्यसंकल्प और कल्पका अन्त अर्थात् प्रलय करनेवाले हैं ॥४॥

आप नित्य है, मोहरहित हैं, निर्गुण हैं, निरंजन हैं, निजानन्दरुप हैं तथा मुक्तिस्वरुप और मुक्ति प्रदान करनेवाले हैं । आप पूर्ण आनन्दस्वरुप, अचल, सीमारहित, मोक्षरुप, उपाधिरहित, ममतारहित और सबके विधाता है ॥५॥

आप बड़े - बड़े मंगलोंके मूल, आनन्द और महिमाके स्थान, मूर्ख मधु दैत्यको मारनेवाले, दूसरोंको मान देनेवाले और स्वयं मानरहित हैं । आप कामदेवके नाशक, मदसे रहित, मायासे रहित, सुन्दरी लक्ष्मी देवीके स्वामी और हाथमें कमल लेनेवाले हैं ॥६॥

आपके नेत्र कमलके समान हैं, आप चौंसठ कलाओंके भण्डार, धनुष धारण करनेवाले, कोशलदेशके स्वामी और कल्याणकी राशि हैं । राक्षसरुपी बहुत - से मतवाले हाथियोंको मारनेके लिये सिंह हैं, भक्तोंके मनरुपी पवित्र वनमें निवास करनेवाले हैं ॥७॥

आप पापरहित, अद्वितीय, दोषरहित, अप्रकट, अजन्मा, सीमारहित, निर्विकार और आनन्दके समुद्र हैं । आप अचल हैं, ( पर ) एक ही स्थानमें आपका निवास नहीं हैं - आप सर्वत्र हैं, परिपूर्ण हैं, नीरोग अर्थात् मायाके विकारोंसे रहित हैं और अनादि हैं । आप ही मेघनादके मारनेवाले लक्ष्मणजीके बड़े भाई हैं ॥८॥

यह तुलसीदास संसारके दुःखोंसे दुःखी, विपदग्रस्त, शोकयुक्त और अत्यन्त भयभीत हो रहा है; हे शरणागतपालक । हे परम करुणाके धाम ! हे पृथ्वीपति रामजी ! इस दुर्विनीतकी रक्षा कीजिये ॥९॥

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Last Updated : August 25, 2009

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