हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|विनय पत्रिका|
विनयावली ८२

विनय पत्रिका - विनयावली ८२

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


राम भलाई आपनी भल कियो न काको ।
जुग जुग जानकिनाथको जग जागत साको ॥१॥
ब्रह्मादिक बिनती करी कहि दुख बसुधाको ।
रबिकुल - कैरव - चंद भो आनंद - सुधाको ॥२॥
कौसिक गरत तुषार ज्यों तकि तेज तियाको ।
प्रभु अनहित हित को दियो फल कोप कृपाको ॥३॥
हर्यो पाप आप जाइकै संताप सिलाको ।
सोच - मगन काढ्यो सही साहिब मिथिलाको ॥४॥
रोष - रासि भृगुपति धनी अहमिति ममताको ।
चितवत भाजन करि लियो उपसम समताको ॥५॥
मुदित मानि आयसु चले बन मातु - पिताको ।
धरम - धुरंधर धीरधुर गुन - सील - जिता को ? ॥६॥
गुह गरीब गतग्यानि हू जेहि जिउ न भखा को ?
पायो पावन प्रेम तें सनमान सखाको ॥७॥
सदगति सबरी गीधकी सादर करता को ?
सोच - सींव सुग्रीवके संकट - हरता को ? ॥८॥
राखि बिभीषनको सकै अस काल - गहा को ?
                  तेहि काल कहाँ
आज बिराजत राज है दसकंठ जहाँको ॥९॥
बालिस बासी अवधको बूझिये न खाको ।
सो पाँवर पहुँचो तहाँ जहँ मुनि - मन थाको ॥१०॥
गति न लहै राम - नामसों बिधि सो सिरजा को ?
सुमिरत कहत प्रचारि कै बल्लभ गिरिजाको ॥११॥
अकनि अजामिलकी कथा सानंद न भा को ?
नाम लेत कलिकालहू हरिपुरहिं न गा को ॥१२॥
राम - नाम - महिमा करै काम - भुरुह आको ।
साखी बेद पुरान हैं तुलसी - तन ताको ॥१३॥

भावार्थः- श्रीरामजीने अपने भले स्वभावसे किसका भला नहीं किया ? युग - युगसे श्रीजानकीनाथजीका यह कार्य जगतमें प्रसिद्ध है ॥१॥
ब्रह्मा आदि देवताओंने पृथ्वीका दुःख सुनाकर ( जब )  विनय की थी, ( तब पृथ्वीका भार हरनेके लिये और राक्षसोंको मारनेके लिये ) सूर्यवंशरुपी कुमुदिनीको प्रफुल्लित करनेवाले चन्द्ररुप एवं अमृतके समान आनन्द देनेवाले श्रीरामचन्द्रजी प्रकट हुए ॥२॥
विश्वामित्र ताड़काका तेज देखकर ओलेकी नाईं गले जाते थे । प्रभुने ताड़काको मारकर, शत्रुको मित्रका - सा फल दिया एवं क्रोधरुपी परम कृपा की । भाव यह है कि दृष्ट ताड़काको सदगति देकर देकर उसपर कृपा की ॥३॥
स्वयं जाकर शिला ( बनी हुई अहल्या ) - का पाप - संताप दूर कर दिया, फिर ( धनुष्ययज्ञके समय ) शोक - सागरमेंसे डूबते हुए मिथिलाके महाराज जनकको निकाल लिया, अर्थात धनुष तोड़कर उनकी प्रतिज्ञा पूरी कर दी ॥४॥
परशुराम क्रोधके ढेर एवं अहंकार और ममत्वके धनी थे, उन्हें भी आपने देखते ही शान्त और समाताका पात्र बना लिया । अर्थात् वह क्रोधीसे शान्त और अहंकारीसे समद्रष्टा हो गये ॥५॥
माता ( कैकेयी ) और पिताकी आज्ञा मानकर प्रसन्नचितसे वन चले गये । ऐसा धर्मधुरन्धर और धीरजधारी तथा सदगुण और शीलको जीतनेवाला दूसरा कौन है ? कोई भी नहीं ॥६॥
नीच जातिका गरीब गुह् निषाद, जिसने, ऐसा कौन जीव है जिसे नहीं खाया हो अर्थात् जो सब प्रकारके जीवोंका भक्षण कर चुका था, उसने भी पवित्र प्रेमके कारण श्रीरघुनाथजीसे सखा - जैसा आदर प्राप्त किया ॥७॥
शबरी ओर गी ध ( जटायु ) - को सत्कारके साथ मोक्ष देनेवाला कौन है ? और शोककी सीमा अर्थात् महान दुःखी सुग्रीवका संकट दूर करनेवाला कौन है ? ( श्रीरामजी ही हैं ) ॥८॥
ऐसा कौन कालका ग्रास था, जो ( रावणसे निकाले हुए ) विभीषणको अपनी शरणमें रखता ? ( अथवा ' तेहि काल कहाँको ' ऐसा पाठ होनेपर - उस समय ऐसा कौन था जो विभीषणको अपनी शरणमें रखता ) जिस रावणके राज्यमें आज भी विभीषण राजा बना बैठा है ( यह सब रघुनाथजीकी ही कृपा है ॥९॥
अयोध्याका रहनेवाला मूर्ख धोबी, जिसमें बुद्धिका नाम भी नहीं था, वह पामर भी वहाँ पहुँच गया, जहाँ पहुँचनेमें मुनियोंका मन भी थक जाता है ।
( महामुनिगण जिस परम धामके सम्बन्धमें तत्त्वका विचार भी नहीं कर सकते, वह धोबी वहीं चला गया ) ॥१०॥
ब्रह्माने ऐसा किसे रचा है, जो राम - नाम लेकर मुक्तिका भागी न हो ? पार्वतीवल्लभ शिवजी ( जिस ) रामनामका स्वयं स्मरण करते हैं और दूसरोंको उपदेश देकर उसका प्रचार करते हैं ॥११॥
अजामिलकी कथा सुनकर कौन प्रसन्न नहीं हुआ ? और राम - नाम लेकर, इस कलिकालमें भी कौन भगवान् हरिके परम धाममें नहीं गया ? ॥१२॥
राम - नामकी महिमा ऐसी है कि वह आकके पेड़को भी कल्पवृक्ष बना सकती है । वेद और पुराण इस बातके साक्षी हैं, ( इसपर भी विश्वास न हो, तो ) तुलसीकी ओर देखो । भाव यह है, कि मैं क्या था और अब राम - नामके प्रभावसे कैसा राम - भक्त हो गया हूँ ॥१३॥

N/A

References : N/A
Last Updated : November 11, 2010

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP