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विनयावली १५८

विनय पत्रिका - विनयावली १५८

विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


प्रिय रामनामतें जाहि न रामो ।

ताको भलो कठिन कलिकालहुँ आदि - मध्य - परिनामो ॥१॥

सकुचत समुझि नाम - महिमा मद - लोभ - मोह - कोह - कामो ।

राम - नाम - जप - निरत सुजन पर करत छाँह घोर धामो ॥२॥

नाम - प्रभाउ सही जो कहै कोउ सिला सरोरुह जामो ।

जो सुनि सुमिरि भाग - भाजन भइ सुकृतसील भील - भामो ॥३॥

बालमीकि - अजामिलके कछु हुतो न साधन सामो ।

उलटे पलटे नाम - महातम गुंजनि जितो ललामो ॥४॥

रामतें अधिक नाम - करतब , जेहि किये नगर - गत गामो ।

भये बजाइ दाहिने जो जपि तुलसिदाससे बामो ॥५॥

भावार्थः - जिसे श्रीरामजी भी राम - नामकी अपेक्षा अधिक प्यारे नहीं है ( यदि कोई कहे कि तुम्हें राम मिल जायँगे , पर राम - नाम छोड़ना होगा , तो वह इस बातको भी स्वीकार नहीं करता ; वह कहता है कि यदि श्रीरामके मिलनेसे राम - नाम छोड़ना पड़े तो मुझे श्रीरामके मिलनेकी आवश्यकता नहीं है । मुझे तो उनका नाम ही सदा चाहिये । ऐसे नाम - प्रेमीसे राम कितना प्रेम करते हैं , सो तो केवल राम ही जानते हैं , गोसाईंजी कहते हैं कि जो इस प्रकार राम - नामका मतवाला हैं ) उसका इस कराल कलिकालमें , आदि मध्य और अन्त , तीनों ही कालोंमें कल्याण होगा ॥१॥

नामकी महिमा समझकर अभिमान , लोभ , अज्ञान , क्रोध और काम सकुचा जाते हैं , सामने नहीं आते । जो सज्जन सदा राम - नामका जप करते रहते हैं , उनपर कड़ी धूप भी छाया कर देती है ( महान - से - महान दुःख भी सुखरुप बन जाते हैं ) ॥२॥

यदि कोई कहे कि नामके प्रभावसे पत्थरमें कमल उत्पन्न हो गया , तो उसे भी सच ही समझना चाहिये ( क्योंकि राम - नामके प्रभावसे असम्भव भी सम्भव हो जाता हैं ) जिस नामको सुनने और स्मरण करनेसे भीलनी शबरी भी परम भाग्यवती तथा शील और पुण्यमयी बन गयी ( उससे क्या नहीं हो सकता ? ) ॥३॥

वाल्मीकि और अजामिलके पास तो कोई भी साधनकी सामग्री नहीं थी , किन्तु उन्होंने भी उलटे - पुलटे राम - नामके माहात्म्यसे घुँघचियोंसे जवाहरात जीत लिये ( परम रत्न परमात्माको प्राप्त कर लिया ) ॥४॥

नामकी शक्ति श्रीरघुनाथजीसे भी अधिक है , ( क्योंकि श्रीरामजी इस नामसे ही वशमें होते हैं ) इस राम - नामने ग्रामीण मनुष्योंको चतुर नागरिक बना दिया ( असभ्योंका परम पुनीत महात्मा बना दिया ) । जिसे जपकर तुलसीदास - सरीखे बुरे जीव भी डंकेकी चोट अच्छे हो गये ( फिर कहनेको क्या रह गया ? ) ॥५॥

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Last Updated : November 13, 2010

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