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विनयावली ९२

विनय पत्रिका - विनयावली ९२

विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


ऐसो को उदार जग माहीं ।

बिनु सेवा जो द्रवै दीनपर राम सरिस कोउ नाहीं ॥१॥

जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ग्यानी ।

सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी ॥२॥

जो संपति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं ।

सो संपदा बिभीषन कहँ अति सकुच - सहित हरि दीन्हीं ॥३॥

तुलसिदास सब भाँति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो ।

तौ भजु राम , काम सब पूरन करैं कृपानिधि तेरो ॥४॥

भावार्थः - संसारमें ऐसा कौन उदार है , जो बिना ही सेवा किये दीन - दुःखियोंपर ( उन्हें देखते ही ) द्रवित हो जाता हो ? ऐसे एक श्रीरामचन्द्र ही हैं , उनके समान दूसरा कोई नहीं ॥१॥

बड़े - बड़े ज्ञानी मुनि योग , वैराग्य आदि अनेक साधन करके भी जिस परम गतिको नहीं पाते , वह गति प्रभु रघुनाथजीने गीध और शबरीतकको दे दी ओर उसको उन्होंने अपने मनमें कुछ बहुत नहीं समझा ॥२॥

जिस सम्पत्तिको रावणने शिवजीको अपने दसों सिर चढ़ाकर प्राप्त किया था ; वही सम्पत्ति श्रीरामजीने बड़े ही संकोचके साथ विभीषणको दे डाली ॥३॥

तुलसीदास कहते हैं कि अरे मेरे मन , जो तू सब तरहसे सब सुख चाहता है , तो श्रीरामजीका भजन कर । कृपानिधान प्रभु तेरी सारी कामनाएँ पूरी कर देंगे ॥४॥

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Last Updated : November 11, 2010

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