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विनयावली १६८

विनय पत्रिका - विनयावली १६८

विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


जाको हरि दृढ़ करि अंग कर्यो ।

सोइ सुसील , पुनीत , बेदबिद , बिद्या - गुननि भर्यो ॥१॥

उतपति पांडु - सुतनकी करनी सुनि सतपंथ डर्यो ।

ते त्रैलोक्य - पूज्य , पावन जस सुनि - सुनि लोक तर्यो ॥२॥

जो निज धरम बेदबोधित सो करत न कछु बिसर्यो ।

बिनु अवगुन कृकलास कूप मज्जित कर गहि उधर्यो ॥३॥

ब्रह्म बिसिख ब्रह्मांड दहन छम गर्भ न नृपति जर्यो ।

अजर - अमर , कुलिसहुँ नाहिंन बध , सो पुनि फेन मर्यो ॥४॥

बिप्र अजामिल अरु सुरपति तें कहा जो नहिं बिगर्यो ।

उनको कियो सहाय बहुत , उरको संताप हर्यो ॥५॥

गनिका अरु कंदरपतें जगमहँ अघ न करत उबर्यो ।

तिनको चरित पवित्र जानि हरि निज हदि - भवन धर्यो ॥६॥

केहि आचरन भलो मानैं प्रभु सो तौ न जानि पर्यो ।

तुलसिदास रघुनाथ - कृपाको जोवत पंथ खर्यो ॥७॥

भावार्थः - जिसे श्रीहरिने दृढ़तापूर्वक हदयसे लगा लिया , वही सुशील है , पवित्र है , वेदका ज्ञाता है और समस्त विद्या एवं सदगुणोंसे भरा हुआ है ( जिसपर भगवान् कृपा करते हैं , सारे सदगुण अपना गौरव बढ़ानेके लिये उसके अंदर आप ही आ जाते हैं ) ॥१॥

पाण्डुके पुत्रोंकी उत्पत्ति और उनकी करतूतको सुनकर सन्मार्गतक डर गया था ; किन्तु वे ही श्रीहरिकृपासें तीनों लोकोंमें पूजनीय हो गये और उनका पवित्र यश सुन - सुनकर लोग तर गये ॥२॥

जिस राजा नृगने वेद - विहित स्वधर्मके पालनमें तनिक भी कसर नहीं की थी और जो बिना ही किसी दोषके गिरगिट होकर कुएँमें पड़ा हुआ था , उसको आपने हाथ पकड़कर बाहर निकाल लिया और उसका उद्धार कर दिया । ( गिरगिटकी योनिसे छुड़ाकर दिव्यलोकको भेज दिया ) ॥३॥

सारे ब्रह्माण्डको भस्म कर देनेमें समर्थ ( अश्वत्थामाके ) ब्रह्मास्त्रमें भी राजा ( परीक्षित् ) गर्भमें नहीं जला और अजर एवं अमर ( नमुचि ) दैत्य जो वज्रसे भी नहीं मरा था , वह फेनसे मर गया ॥४॥

अजामिल ब्राह्मण और इन्द्रके ( आचरणोंमें ) ऐसी कौन - सी बात थी जो न बिगड़ी हो , किन्तु आपने उनकी बड़ी सहायता की और उनके हदयका सन्ताप हर लिया ॥५॥

( पिंगला ) वेश्या और कामदेवने जगतमें ऐसा कौन सा पाप है जो नहीं किया हो , किन्तु भगवानन उनका चरित्र पवित्र समझकर उन्हें अपने हदय - मन्दिरमें स्थान दिया ॥६॥

भगवान् किस आचरणसे प्रसन्न होते हैं , यह समझमें नहीं आता । तुलसीदास तो बस , खड़ा - खड़ा केवल श्रीरघुनाथजीकी कृपाकी बाट देख रहा है ॥७॥

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Last Updated : November 13, 2010

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