हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|विनय पत्रिका|
विनयावली १९८

विनय पत्रिका - विनयावली १९८

विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


राम कबहुँ प्रिय लागिहौ जैसे नीर मीनको ?

सुख जीवन ज्यों जीवको , मनि ज्यों फनिको हित , ज्यों धन लोभ - लीनको ॥१॥

ज्यों सुभाय प्रिय लगति नागरी नागर नवीनको ।

त्यों मेरे मन लालसा करिये करुनाकर ! पावन प्रेम पीनको ॥२॥

मनसाको दाता कहैं श्रुति प्रभु प्रबीनको ।

तुलसीदासको भावतो , बलि जाउँ दयानिधि ! दीजै दान दीनको ॥३॥

भावार्थः - हे श्रीरामजी ! मुझे क्या कभी आप ऐसे प्यारे लगेंगे , जैसा मछलीको जल प्यारा लगता है , जीवको सुखमय जीवन प्यारा लगता है , साँपको मणि प्रिय लगती है और अत्यन्त लोभीको धन प्यारा लगता है ? ॥१॥

अथवा जैसे नवयुवक नायकको स्वभावसे ही नवयुवती चतुरा नायिका प्यारी लगती है , वैसे ही हे करुणाकी खानि ! मेरे मनमें केवल आपके प्रति पवित्र और अनन्य प्रेमकी ही एक लालसा उत्पन्न कर दीजिये ॥२॥

वेद कहते हैं कि प्रभु मनमानी वस्तु देनेवाले हैं और बड़े ही चतुर हैं ( बिना ही कहे मनकी बात जानकर उसे पूरी कर देते हैं ) । हे दयानिधे ! मैं आपकी बलैया लेता हूँ , इस दीन तुलसीदासको भी उसकी मनचाही वस्तुका दान दे दीजिये ॥३॥

N/A

References : N/A
Last Updated : November 13, 2010

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP