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‘ जानकीजीवनराम ’ मंत्रार्याष्टक

‘ जानकीजीवनराम ’ मंत्रार्याष्टक

श्रीसद्गुरु कृष्ण जगन्नाथ भट्ट बांदकरमहाराज.


जाश्वनिळा प्रिय गिरिजा  जान्हवि परि जेथ जनकजा - भाजा ॥ जागुनि अनुभवति मजा  जाणुनि त्या सेवि शंभु रघुराजा ॥१॥
नरवर पतीतपावन  न जगिं सुखास्पद असा तया न - मन ॥ नव नव हर्षद मन्मन  नवल पदीं रमत पावता श्रम न ॥२॥
कीर्तन - परा त्रिलोकी  कीटक पशु पक्षि नरतती कि - तकी ॥ किन्नर सुरतति जितकी  किति सांगूं नामतत्परा तितकी ॥३॥
जीवस्थिति वपुमय जी  जीववि विषयां त्रिताप जी - माजी ॥ जीव कळुनि मग ते त्यजि  जी रामीं रमवि वृत्ति धरि ताजी ॥४॥
वरिला राम रमाधव  वरिष्ठ यन्नामरत सदैव भव ॥ वरद महाबळ वैभव  वदनिं जपत नाम त्य अन ठेवि भव ॥५॥
न असा त्रिजगज्जीवन  नवल सुखस्वरुपिं उरवुं दे न मन ॥ नमिन तया रात्रंदिन  नतभजकां रक्षि करुनि अरिदमन ॥६॥
राघव आणित नगरा  रात्रिंचर वधुनि निज वरा दारा ॥ राष्ट्रीय कारभारा  राम चिदानंद चालवि अपारा ॥७॥
मन रमवुनि सौख्य परम  मज करि हृदयांत हरुनि तम राम ॥ मत्पालक पुरुषोत्तम  मजमाजिवसे अखंड सुखधाम ॥८॥

जानकिजीवनरामा नाम जपें उघड कळविं निजनातें ॥ विष्णू कृष्ण जगन्नाथ प्रिय आत्मस्वरूपचि मनातें ॥१॥
जानकिजीवनरामा मंत्रार्याष्टक तुवांचि रघुराया ॥ रचिलें तुज अर्पाया कृष्ण जगन्नाथ मीपण नुराया ॥२॥

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Last Updated : January 17, 2018

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