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विश्व -वाटिकाकी प्रति क्य...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - विश्व -वाटिकाकी प्रति क्य...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

विश्व-वाटिकाकी प्रति क्यारीमें क्यों नित फिरता माली ।

किसके लिये सुमन चुन-चुनकर सजा रहा सुन्दर डाली ॥

क्या तू नही देखता इन सुमनोंमें उसका प्यारा रूप ।

जिसके लिये विविध विधिसे, है हार गूँथता तू अपरूप ॥

बीजांकुर शाखा-उपशाखा, क्यारी-कुंज, लता-पत्ता ।

कण-कणमें है भरी हुई उस मोहनकी मधुरी सत्ता ॥

कमलोंका कोमल पराग विकसित गुलाबकी यह लाली ॥

सनी हुई है उससे सारे विश्व-बागकी हरियाली ॥

मधुर हास्य उसका ही पाकर खिलती नित नव-नव कलियाँ ।

उसकी मंजु मत्तता पाकर भ्रमर कर रहे रँगरँलियाँ ॥

पाकर सुस्वर कंठ उसीका विहग कूँजते चारों ओर ।

देख उसीको मेघरूपमें हर्षित होते चातक मोर ॥

हार गूँथकर कहाँ जायेगा उसे ढूँढने तू माली ?

देख, इन्ही सुमनोंके अंदर उसकी मूरति मतवाली ॥

रूप रंग सौरभ-परागमें भरा उसीका प्यारा रूप ।

जिसके लिये इन्हे चुन-चुनकर हार गूँथता तू अपरूप ॥

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Last Updated : September 25, 2008

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