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हे दयामय ! दीनबन्धो !! दी...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - हे दयामय ! दीनबन्धो !! दी...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

हे दयामय ! दीनबन्धो !! दीनको अपनाइये ।

डूबता बेड़ा मेरा मझधार पार लँघाइये ।

नाथ! तुम तो पतितपावन, मै पतित सबसे बड़ा ।

कीजिये पावन मुझे, मैं शरणमें हूँ आ पड़ा ॥

तुम गरीबनिवाज हो, यों जगत सारा कह रहा ।

मै गरीब अनाथ दुःखप्रवाहमें नित बह रहा ॥

इस गरीबीसे छुड़ाकर कीजिये मुझको सनाथ ।

तुम सरीखे नाथ पा, फिर क्यों कहाऊँ मै अनाथ ॥

हो तृषित आकुल अमित प्रभु ! चाहता जो बूँद नीर ।

तुम तृषाहारी अनोखे उसे देते सुधा-क्षीर ॥

यह तुम्हारी अमित महिमा सत्य सारी है प्रभो ! ।

किसलिये मै रहा बंचित फिर अभीतक हे विभो ! ॥

अब नही ऐसा उचित, प्रभु ! कृपा मुझपर कीजिये ।

पापका बन्धन छुड़ा नित-शान्ति मुझको दीजिये ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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