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प्रभु ! मैं नहिं नाव चला...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - प्रभु ! मैं नहिं नाव चला...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

प्रभु ! मैं नहिं नाव चलावौं ।

तव पद-रज नर करनि मुरि प्रभु ! महिमा अमित कहाँ लगि गावौं ॥

पाहन छुवत नारि भै पावनि, काट पुरातनकी यह नावौं ।

परसत रज मुनि-नारि बनै यह, मैं पुनि असि नौका कहँ पावौं ॥

मैं अति दीन दरिद्र, कुटुँब बहु, यहि नौकाते सबहि निभावौं ।

जो यह उड़ै, जीविका बिनसै, केहि बिधि पुनि परिवार चलावौं ॥

अनुअम्ति होइ तो लेइ कथौता, सुरसरि-जल भरि प्रभुपहँ लावौं ।

पद पखारि, रज धोइ भलीबिधि, करि चरनामृत पाप नसावौ ॥

प्रभु-चरननकी सपथ नाथ ! मै अन्य भाँति नहिं नाव चढ़ावौ ।

लखन रिसाइ तीर जो मारैं, निबल, पकरि पद प्रान गवावौं ॥

प्रेम भरे, अति सरल सुहावन अटपट बचन सुने रघुरावौं ।

करुनानिधिं हँसि अनुमति दीन्हीं, केवट कह्यो पार लै जावौं ॥

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Last Updated : September 25, 2008

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