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पतित नही जो होते जगमें , ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - पतित नही जो होते जगमें , ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

पतित नही जो होते जगमें, कौन पतितपावन कहता ?

अधमोंके अस्तित्व बिना अधमोद्धारण कैसे कहता ॥

होते नही पातकी, 'पातकि-तारण' तुमको कहता कौन ?

दीन हुए बिन, दीनदयालो ! दीनबंधु फिर कहता कौन? ॥

पतित, अधम, पापी दीनोंको क्योंकर तुम बिसार सकते ।

जिनसे नाम कमाया तुमने, क्योंकर उन्हें टाल सकते ॥

चारों गुण मुझमें पूरे, मै तो विशेष अधिकारी हूँ ।

नाम बचानेका साधन हूँ, यों भी तो उपकारी हूँ ॥

इतनेपर भी नाथ ! तुम्हे यदि मेरा स्मरण नहीं होगा ।

दोष क्षमा हो, इन नामोंका रक्षण फिर क्योंकर होगा ॥

सुन प्रलापयुत पुकार, अब तो करिये नाथ ! शीघ्र उद्धार ।

नही, छोडिये, नामोंको यों कहनेको होता लाचार ॥

जिसके कोई नही, तुम्ही उसके रक्षक कहलाते हो ।

मुझे नाथ अपनोमें फिर क्यों इतना सकुचाते हो ?

नाम तुम्हारे चिर सार्थक है मेरा दृढ़ विश्वास यही ।

इसी हेतु, पावन कीजै प्रभु ! मुझे कहींसे आस नही ॥

चरणोंको दृढ़ पकड़े हूँ, अब नहीं हटूँगा किसी तरह ।

भले फेंक दो, नही सुहाता अगर पड़ा भी इसी तरह ॥

पर यह रखना, स्मरण नाथ ! जो यों दुतकारोगे हमको ।

अशरणशरण, अनाथनाथ, प्रभु कौन कहेगा फिर तुमको?

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Last Updated : May 24, 2008

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