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नाथ ! थारै सरण पड़ी दासी ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - नाथ ! थारै सरण पड़ी दासी ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

नाथ ! थारै सरण पड़ी दासी ।

(मोय) भवसागरमें त्यार काटद्यो जनन-मरण फाँसी ॥

नाथ ! मै भोत कष्ट पाई ।

भटक भटक चौरासी जूणी मिनख-देह पाई । मिटाद्यौ दुःखाँकी रासी ॥

नाथ ! मैं पाप भोत कीना ।

संसारी भोगाँकी आसा दुःख भोत दीना । कामना है सत्यानासी ॥

नाथ मैं भगति नहीं कीनी ।

झूठा भोगाँकी तृसनामें उम्मर खो दीनी । दुःख अब मेटो अबिनासी ॥

नाथ ! अब सब आसा टूटी ।

(थारे) श्रीचरणाँकी भगति एक है संजीवन बूटी ।

रहूँ नित दसरणकी प्यासी ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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