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बिदुर -गह्र स्याम पाहुने ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - बिदुर -गह्र स्याम पाहुने ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

बिदुर-गह्र स्याम पाहुने आये ।

नख-सिख रुचिररूप मनमोहन, कोटिमदन छबि छाये ॥

बिदुर न हुते घरहिमें तेहि छिन, स्याम पुकारन लागे ।

बिदुर घरनि नहाति उठि धाई नैन प्रेमरस पागे ॥

भूली बसन न्हात रहि जेहि थल, तनु सुधि सकल भुलाई ।

बोलति अटपट बचन प्रेमबस, कदरी-फल ले आई ॥

छीलत डारत गूदो इत-उत छिलका स्याम खवावै ।

बारहिं-बार स्वाद कहि-कहि हरि,प्रमुदित भोग लगावै ॥

तनिक बेर मह॥ हरि गुन गावत, बिदुर घरहिं जब आये ।

देखि दरस सो कहत, 'अहह ! तैं छिलका स्याम खवायें' ॥

करतें केरा झटकि बिदुर घरनी घरमाहि पठाई ।

तनु सुधि पाइ सलाज ससंकित, बसन पहिरि चलि आई ॥

बिदुर प्रेमजुत छीलि छीलिकै केरा हरिहिं खवावै ।

कहत स्याम वह सरस मनोहर स्वाद न इनमहँ आवै ॥

भूखो सदा प्रेमको डोलूँ भगत-जनन गृह जाऊँ ।

पाइ प्रेमजुत अमिय पदारथ, खात न कबहुँ अघाऊँ ॥

हरि अवतरे कारागार ॥

दिसि सकल भइँ परम निरमल अभ्र सुखमा-सार ।

लता-बिटप सुपल्लवित पुष्पित नमत फल-भार ॥

सुखद मंद सुगंध सीतल बहत मलय-बयार ।

देवगन हरखत सुमन बरखत करत जयकार ॥

बिनय करत बिरंचि नारद सिद्ध बिबिध प्रकार ।

करत किन्नर गान बहु गंधरब हरख अपार ॥

संख चक्र गदा नवांबुज लसत है भुज चार ।

भृगु-लता कौस्तुभ सुसोभित, कांतिके आगार ॥

नौमि नीरद नील नव तनु गले मुकताहार ।

पीत पट राजत, अलक लखि अलिहु करत पुकार ॥

परम बिस्मित देखि दंपति छबिहिं अमित उदार ।

निरखि सुंदरता अपरिमित लाजत कोटिन मार ॥

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Last Updated : September 25, 2008

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