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दरस बिनु दूखण लागै नै...

वियोग - दरस बिनु दूखण लागै नै...

भगवद्वियोगकी पीडाका चित्रण ’वियोग’ शीर्षकके अंतर्गत पदोंमें है ।


दरस बिनु दूखण लागै नैन ।

जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे कबहु न पायो चैन ॥

सबद सुणत मेरी छतियाँ काँपै मीठे लागैं बैन ।

बिरह कथा काँसूँ कहूँ सजनी बह गई करवत ऐन ॥

कल न परत पल हरि मग जोवत भई छमासी रैन ।

मीराके प्रभु कब र मिलोगे दुख मेटण सुख दैन ॥

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Last Updated : January 30, 2018

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