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कबहूँ मिलोगे दीनानाथ !...

वियोग - कबहूँ मिलोगे दीनानाथ !...

भगवद्वियोगकी पीडाका चित्रण ’वियोग’ शीर्षकके अंतर्गत पदोंमें है ।


कबहूँ मिलोगे दीनानाथ ! हमारे, कबहूँ मिलोनगे राधेश्याम ! हमारे ।

कबहूँ मिलोगे, राम कबहूँ मिलोगे श्याम, कबहूँ मिलोगे चितचोर हमारे ॥१॥

जैसे मिले प्रह्लाद भगतको, खम्भ फाड़ हिरनाकुश मारे ।

जैसे मिले प्रभु भक्त-विभीषण, लंका जार निशाचर मारे ॥२॥

जैसे मिले प्रभु जनकसुताको, तोड़ा धनुष भूप सब हारे ।

जैसे मिले प्रभु द्रुपदसुताको, खैंचत चीर दुशासन हारे ॥३॥

जैसे मिले प्रभु मीराबाईको, जहरको प्यालो अमृत कर डारे ।

जैसे मिले प्रभु नरसीभगत को, भात भरन हरि आप पधारे ॥४॥

जैसे मिले प्रभु बली राजाको, चार मास द्वारे पर ठाड़े ।

सूरदासको कबहूँ मिलोगे, टप-टप टपकत नयन हमारे ॥५॥

कबहूँ मिलोगे माखन चोर हमारे, कबहूँ मिलोगे गोपीनाथ हमारे ? ॥

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Last Updated : January 30, 2018

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