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अरज म्हाँरी जाय कहीज्य...

वियोग - अरज म्हाँरी जाय कहीज्य...

भगवद्वियोगकी पीडाका चित्रण ’वियोग’ शीर्षकके अंतर्गत पदोंमें है ।


अरज म्हाँरी जाय कहीज्यो जी ।

ऊधोजी ! मोहन ने समझाय, वृन्दावन बेगि ल्याज्यो जी ॥टेर॥

वृन्दावन फीको लागे जी !

ऊधोजी ! नैना देख्यो नहीं जाय, आग उर भीतर जागे जी ॥

यसोदा अति अकुलावे जी !

ऊधोजी ! नन्दजी करत विलाप, मोहन कब दर्श दिखावे जी !

राधा याने याद करे छै जी !

ऊधोजी ! छिन छिनकरत विलाप, नैणाँ मैं नीर बहै छै जी ॥

ऐसी हम नहि जानी जी !

ऊधोजी ! अध बिच गये छिटकाय, पीड़ म्हारी नाहि पिछानी जी ॥

दासी म्हारी वैर्न भई छै जी !

ऊधोजी ! मोहन ने लियो मोय जोय चित्त रोय रह्यो छै जी ॥

स्याम बिना सेज अलूँणी !

ऊधोजी ! सिर पर डारुँगी खाख, जाय बन तापूँ धूणी जी ॥

ऊधोजी ! थाँरा गुण भूलूँ मैं नाहिं, सूरत झटपट दिखलाओ जी ॥

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Last Updated : January 30, 2018

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