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रुद्र सूक्तम्

पूजा विधी - रुद्र सूक्तम्

जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान , पूजा , संध्या , देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।


रुद्र - सूक्तम्

नमस्ते रुद्र मन्यवऽ उतोतऽ इषवे नम : बाहुभ्यामुत ते नम : ॥१॥

हे रुद्र । आपको नमस्कार है , आपके क्रोध को नमस्कार है , आपके वाण को नमस्कार है और आपकी भुजाओं को नमस्कार है ।

या ते रुद्र शिवा तनूरघोरापापकाशिनी ।

तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्तभिचाकशीहि ॥२॥

हे गिरिशन्त अर्थात् पर्वत पर स्थित होकर सुख का विस्तार करने वाले रुद्र । आप हमें अपनी उस मङ्गलमयी मूर्ति द्वारा अवलोकन करें जो सौम्य होने के कारण केवल पुण्यों का फल प्रदान करने वाली है ।

यामिषुङ्गिरिशन्त हस्ते विभर्ष्यस्तवे ।

शिवाङ्गिरित्र तां कुरु मा हि सी : पुरुषञ्जगत् ॥३॥

हे गिरिशन्त । हे गिरित्र अर्थात् पर्वत पर स्थित होकर त्राण करने वाले । आप प्रलय करने के लिए जिस बाण को हाथ में धारण करते हैं उसे सौम्य कर दें और जगत् के जीवों की हिंसा न करें ।

शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छावदामसि ।

यथा न : सर्वमिज्जगदयक्ष्म सुमनाऽ असत् ॥४॥

हे गिरिश । हम आपको प्राप्त करने के लिए मंगलमय स्तोत्र से आपकी प्रार्थना करते हैं । जिससे हमारे यह सम्पूर्ण जगत् रोग रहित एवं प्रसन्न हो ।

अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।

अहींश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योधराची : परासुव ॥५॥

शास्त्र सम्मत बोलने वाले , देव हितकारी , परमरोग नाशक , प्रथम पूज्य रुद्र हमें श्रेष्ठ कहें और सर्पादिका विनाश करते हुए सभी अधोगामिनी राक्षसियों आदि को भी हमसे दूर करें ।

असौ यस्ताम्रोऽ अरुणऽ उत बब्भ्रु : सुमङ्गल : ।

ये चैन रुद्रा अभितो दिक्षु श्रिता : सहस्त्रशो वैषा हेडऽ ईमहे ॥६॥

ये जो ताम्र , अरुण और पिङ्ग वर्ण वाले मंगलमय सूर्य रूप रुद्र हैं और जिनके चारों ओर जो ये सहस्त्रों किरणों रूप रुद्र हैं , हम भक्ति द्वारा उनके क्रोध का निवारण करते हैं ।

असौ योवसर्पति नीलग्रीवो विलोहित : ।

उतैनं गोपाऽ अदृश्रन्नदृश्रन्नुदहार्य : सदृष्टो मृडयाति न : ॥७॥

ये जो विशेष रक्तवर्ण सूर्य रूप नीलकण्ठ रुद्र गतिमान हैं , जिन्हें गोप देखते हैं , जल वाहिकाएं देखती हैं वह हमारे देखे जाने पर हमारा मङ्गल करें ।

नमोस्तु नीलग्रीवाय सहस्त्राक्षाय मीढुषे ।

अथो येऽ अस्य सत्त्वानोहन्तेभ्यो करन्नम : ॥८॥

सेचनकारी सहस्त्रों नेत्रों वाले पर्जन्य रूप नीलकण्ठ रूद्र को हमारा नमस्कार है और इनके जो अनुचार है उन्हें भी हमारा नमस्कार है ।

प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुभयोरात्क्रर्योर्ज्याम् ।

याश्च ते हस्तऽ इषव : पराता भगवो व्वप ॥९॥

हे भगवन् । आपके धनुष की कोटियों के मध्य यह जो ज्या है उसे आप खोल दें और आपके हाथ में ये जो वाण हैं उन्हें आप हटा दें और इस प्रकार हमारे लिए सौम्य हो जांयँ ।

विज्यन्धनु : कपर्दिनो विशल्यो वाणवाँ २॥ ऽउत।

अनेशन्नस्य याऽ इषवऽ आभुरस्य निषङ्गधि : ॥१०॥

जटाधारी रूद्र का धनुष ज्यारहित , तूणीर फलकहीन वाणरहित , वाण दर्शन रहित और म्यान खंगरहित हो जाय अर्थात् ये सौम्य हो जाएं ।

या ते हेतिर्म्मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनु : ।

तयास्मान्विश्वतस्त्वमयक्ष्मया परिभुज ॥११॥

हे संतृप्त करने वाले रुद्र । आपके हाथ में जो आयुध है और आपका जो धनुष है उपद्रव रहित उस आयुध या धनुष द्वारा आप हमारी सब ओर से रक्षा करें ।

परिते धन्विनो हेतिरस्मान्वृणक्तु विश्वत : ।

अथो यऽ इषुधिस्तवारेऽ अस्मन्निधेहि तम् ॥१२॥

आप धनुर्धारी का यह जो आयुध है वह हमारी रक्षा करने के लिए हमें चारों ओर से घेरे रहे किन्तु यह जो आपका तरकस है उसे आप हमसे दूर रखें ।

अवतत्त्यधनुष्ट्‌व सहस्त्राक्ष शतेषुधे ।

निशीर्य्य शल्यानाम्मुखा शिवो न : सुमना भव ॥१३॥

हे सहस्त्रों नेत्रों वाले , सैकडों तरकस वाले रुद्र । आप अपने धनुष को ज्या रहित और वामों के मुखों को फलक रहित करके हमारे लिए सुप्रसन्न एवं कल्याणमय हो जांयँ ।

नमस्त ऽआयुधायानातताय धृष्णवे ।

उभाभ्यामुत ते नमो बाहुभ्यान्तव धन्नवने ॥१४॥

हे रुद्र । धनुष पर न चढाये गये आपके वाण को नमस्कार है , आपकी दोनों भुजाओं को नमस्कार है एवं शत्रु - संहारक आपके धनुष को नमस्कार है ।

मा नो महान्तमुत मा नोऽ अर्ब्भकम्मा न उक्षन्तमुत मा नऽ उक्षितम् ।

मा नो व्वधी : पितरम्मोत मातरम्मा न : प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिष : ॥१५॥

हे रुद्र हमारे बडों को मत मारो । हमारे बच्चों को मत मारो । हमारे तरुणों को मत मारो । हमारे भ्रूणों को मत मारो । हमारे पिताओं की हिंसा न करो । हमारी माताओं की हिंसा न करो ।

मानस्तोके तनये मा नऽ आयुषि मा नो गोषु मा नोऽ अश्वेषु रीरिष : ।

मा नो वीरान्नरुद्र भामिनो वधीर्हविष्मन्त : सदमित्त्वा हवामहे ॥१६॥

हे रुद्र । हमारे पुत्रों पर और हमारे पौत्रों पर क्रोध न करें । हमारी गायों पर और हमारे घोडों पर क्रोध न करें । हमारे क्रोधयुक्त वीरों को न मारें । हम हविष्य लिए हुए निरन्तर यज्ञार्थ आपका आवाहन करते हैं ।

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Last Updated : May 24, 2018

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