हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|हिन्दी पदावली| पद १४१ से १५० हिन्दी पदावली पद १ से १० पद ११ से २० पद २१ से ३० पद ३१ से ४० पद ४१ से ५० पद ५१ से ६० पद ६१ से ७० पद ७१ से ८० पद ८१ से ९० पद ९१ से १०० पद १०१ से ११० पद १११ से १२० पद १२१ से १३० पद १३१ से १४० पद १४१ से १५० पद १५१ से १६० पद १६१ से १७० पद १७१ से १८० पद १८१ से १९० पद १९१ से २०० पद २०१ से २१० पद २११ से २२० पद २२१ से २२९ हिन्दी पदावली - पद १४१ से १५० संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की । Tags : abhangbooknamdevअभंगनामदेवपुस्तक पद १४१ से १५० Translation - भाषांतर १४१तत कहन कूं रांम है भजि लीजै सोई ।लीला तिन अगाध की गति लषै न कोई ॥टेक॥कंचन मेर समान है, दीजै दुजि दाना ।कोटि गऊ नित दान दें, नहीं नांव समाना ॥१॥जोग जिग सूं कहा सरै, तीरथ असनांना ।वौ सांप्पा सन भाजहीं, भजीये भगवाना ॥२॥पूजण कूं साधू जणां, हरि के अधिकारी ।इन संगि गोविंद गाइये, वै पर उपगारी ॥३॥एकै मनिये दै दसा, हरि कौ व्रत धरीये ।नांमदेव नांव जिहाज है, भौ सागर तिरीये ॥४॥१४२कहा ले आरती दास करै । तीनि लोक जाकी जोति फिरै ॥टेक॥सात सुमंद जाकै चरन निवासा । कहा भये जल कुंभ भरे ॥१॥कोटि भान जाकै नष की सोभा । कहा भयौ कर दीप फिरै ॥२॥अठार भार जाकै बनमाला । कहा भये कर पहोप धरै ॥३॥अनंत कोटि जाकै बाजा बाजै । कहा घंटा झणकार करै ॥४॥चौरासी लष व्यापक रांमा । केवल हरि जस गावै नामा ॥५॥१४३आरती पतिदेव मुरारी । चवंर डुलै बलि जाऊं तुम्हारी ॥टेक॥चहुं जुगि आरती चहुं जुगि पूजा । चहुं जुगि राम अवर नहीं दूजाअ ॥१॥चहूं दिस देषै चहुं दिस धावै । चहुं दिस राम तहां मन लावै ॥२॥आरती कीजै ऐसे तैसे । ध्रू प्रहिलाद करी सुष जैसे ॥३॥अरधै राम अरध मधि रामा । पूरन सेइ सरै सब कामा ॥४॥आनंद आत्म पूजा । नामदेव भणै मेरे दिव न दूजा ॥५॥१४४गरुड मंडल आव । पृथ्वीपति गरुड मंडल आव ॥टेक॥तू पृथ्वी पति जागृत केला । मैं गाऊं गुन राग रचेला ॥१॥नामदेव कहे बालक तोरा । भक्तिदान दे साहेब मोरा ॥२॥१४५धीरे धीरे षाइबौ कथन न जैबौ । आपन षैबौ तब नृमल ह्रैबौ ॥टेक॥पहली षैहों आई माई । पीछे षैहौं सगा जंवाई ॥१॥उगलिबा चंदा गिलिबा सूर । फुनि मैं षैहों घर कौ ससूर ।फुनि मैं षैहों पंचौ लोग । भणत नामदेव ये सिध जोग ॥२॥१४६तैसी चूक लीजै रे जग जीवना । अनभवल्या बिना ऐसी लषी न कुरसनां ॥टेक॥पारब्रह्माची गोडी, नेणती बापुडी पडीते । सकैडै विषया संगे ॥१॥सिलेसि घातले बैसाचे बैरणें । तेच बिधने नेतियार साचे ॥२॥कमलनी दुरदुरा, ऐकजु बिटा । प्रमल मधु कधि न गैला ॥३॥थाना चया दूधा न होसि बरपडा । अपुध सेचता उचडा, जनम गैला ॥४॥नामा भणै तैसी चूकली तुझी तुझ देषता । अंमृत सेवता, चवै नौंणती ॥५॥१४७देवा, पाहन तारिअलें । राम कहत जन कस न तरे ॥तारिले गनिका विपुरुप कुविजा । विआध अजामलु तारिअले ॥चरणबधिक जन तेऊ मुकति भए । हउ बलिबलि जिन राम कहै ॥दासीसुत जनु बिदरु सुदामा । उग्रसेन कउ राज दिए ॥जपहीन, तपहीन, कुलहीन क्रमहीन । नामेके सुआमी तेउ तरे ॥१४८एक अनेक बिआपक पूरन जत देखउ तत सोई ॥माइआ चित्र बचित्र विमोहित बिरला बूझै कोई ।सभु गोविंदु है, सभु गोविंदु है गोविंदु बिनु नहि कोई ॥सूत एकु मणि सत सहंस जैसे उतिपोति प्रभु सोई ॥जलतरंग अरु फेन बुदबुदा, जलते भिन्न न कोई ॥इहु परपंचु पारब्रह्म की लीला बिचरत आन न होई ॥मिथिआ भरमु अरु सुपनु मनोरथ सति पदारतु जानिआ ॥मुक्ति मनसा गुरु उपदेसी, जागत ही मनु मानिआ ॥कहत नामदेऊ हरि की रचना देखहु रिदै विचारी ॥घट घट अंतरि सरब निरंतरी केवल एक मुरारी ॥१४९पारब्रह्म मुजि चीनसी आसा ते न भावसी ॥रामा भगतह चेतीअले अचिंत मनु राखसी ॥कैसे मन तरहिगा रे संसार सागरु बिखै को बना ॥झूठी माइआ देखि के भूला रे मना ॥छीपे के घरि जनमु दैला गुर उपदेसु भैला ॥संतह कै परसादि नामा हरि भेटुला ॥१५०जै राजु देहि त कवन बडाई । जै भीख मंगावहि त किआ घटि जाई ॥तूं हरि भज मन मेरे पढु निरबानु । बहुरि न होई तेरा आवन जानु ॥सभ तै उपाई भरम भुलाई । जिस तूं देवहि तिसहि बुझाई ॥सतिगुरु मिलै त सहसा जाई । किस हऊ पूजऊ दूजा नदरि न आई ॥एकै पाथर कीजै थाऊ । दूजै पाथर धरिए पाऊ ॥जै इहु देऊ तहु भी देवा । कहि नामदेऊ हम हरिकी सेवा ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 02, 2015 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP