हिन्दी पदावली - पद ५१ से ६०

संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।



५१
बंदे की बंदि छोडि बनवारी ।
असरन सरनि राम कहे बिन आइ परे जम धारी ॥टेक॥
केई बांधे जोग जप करि केई तीरथं दांना ।
केई बांधे नेमा बरतां तेरे हाथि नाथ भगवाना ॥१॥
रामदेव तेरी दासी माया नाटी कपट कीन्हां ।
थावर जंगम जीति लिया है आपा पर नहीं चीन्हां ॥२॥
नांमदेव भणै मैं तुम थैं छूंटू जो तुम छोडावौ गोपालजी ।
तुम बिन मेरे गाहक नांही दीनानाथ दयाल जी ॥३॥

५२
देवा मेरी हीन जाती है काहू पै सहीं न जाती हो ॥टेक॥
मैं नहीं मैं नहीं मैं नहीं मांधौ तूं है मैं नहीं हौं ।
तू एक अनेक है बिस्तरयो मेरी चरम न साई हो ॥१॥
जैसे नदीया समद समानी धरनी बहती हो ।
तुम्हारी कृपा थें नीच ऊंच भए तूं काल की कांती हो ॥२॥
नामौ कहै मेरी देवी न देवा संग न साथी मीतुला ।
तुम्हारी सरनि मैं भाजि दुरयौं हैं बंदि छोडि बाबा बीठुला ॥३॥

५३
हरि नांव राजै हरि नांव गाजै । हरि कौ नांव लेतां कांइ नर लाजै ॥टेक॥
हरि मेरा मातु पिता गुरुदेवा । अपणें राम की करिहूं सेवा ॥१॥
हरि नांव मैं निज कंवला दासी । हरि नांवै संकर अविनासी ॥२॥
हरि नांव मैं ध्रू निहचल करीया । हरि नांव मैं प्रहलाद उधरीया ॥३॥
हरि मेरे जीवन मरण के साथी । हरि जल मगन उधारयौ हाथी ॥४॥
हरि मेरे संगि सुष दाता । हरि नामैं नांमदेव रंगि राता ॥५॥

५४
इतना कहत तोहि कहा लागत । राम नांव ले सोवत जागत ॥टेक॥
ध्रू प्रहलाद इहि गुन तारे । राम नाम अखिर हिरदै विचारे ॥१॥
राम नांम सनकादिक राता । राम नांम नृभै पद दाता ॥२॥
भणत नामदेव भाव ऐसा । जैसी मनसा लाभ तैसा ॥३॥

५५
बोलिधौं निर्वाणैं पद राम नांम । ठाली जिभ्या कौणै है काम ॥टेक॥
सेवा पूजा सुमिरन ध्यांन । झूठा कीजै बिन भगवान ॥१॥
तीरथ बरत जगत की आस । फोकट कीजै बिन बिसवास ॥२॥
ऐकादसी जगत की करनी । पाया महल तब तजी निसरनी ॥३॥
भणत नांमदेव तुम्हारे सरनां । मुझा मनवा तुझा चरनां ॥४॥

५६
ऐसे रामहिं जानौ रे भाई । जैसे भृंगी कीट रहै ल्यौ लाई ॥टेक॥
सरब रुप सरबेसर स्वामी । त्रिगुण रहत देव अंतर जामी ॥१॥
थावर जंगम कीट पतंगा । सति राम सबहिन के संगा ॥२॥
नामा कहै मेरे बंध न भाई । रामनांम मैं नौ निधि पाई ॥३॥

५७
ऐसे राम ऐसे हेरा । राम छांडि चित अनत न फेरौ ॥टेक॥
ज्यूं विषई हेरै परनारी । कौडा डारत फिरै जुवारी ॥१॥
ज्यूं पासा डारै पसवारा । सोना घडता हरै सोनारा ॥२॥
जत्र जाउं तत्र तू ही रामा । चित चिंउंट्या प्रंणवै नामा ॥३॥

५८
पांणीयां बिन मीन तलफै । ऐसे रांम नांम बिन बापुरौ नामा ॥टेक॥
तन लागिलै ताला बेली । बछा बिन गाइ अकेली ॥१॥
जैसे गाइ का बछा छूटिला । थन लागिलै मांषन घूंटिला ॥२॥
मांषन मेल्हिलै ताती धांमा । ऐसे रांम नांम बिन बापुरो नांमा ॥३॥
जैसे बिषई चित पर नारी । ऐसे नांमदेव प्रीति मुरारी ॥४॥

५८
अनबोलता चरन न छांडू । मोहि तुम्हारी आंन बाबा बीठला ॥टेक॥
टगमग टगमग क्यों चोघता । एक बोल बोलौ बोलता ॥१॥
कहिधौं कूतल कहिधौं बली । प्रणवत नांमदेव पुरवौ रली ॥२॥

५९
जत्र जाउं तत्र बीठल भैला । बीठलियौ राजाराम देवा ॥टेक॥
आनिलै कुंभ भराइले उदिक, बालगोबिन्दहिं न्हाण रचौं ।
पहलै नीर जु मछ बिटाल्यौ, झूठण भैला कांइ करुं ॥१॥
आंणिलै केसरि सूकडि समसरि, बाल गोबिंदहिं षौलि रचूं ।
पहली बास भुवंगम लीन्ही, जूंठणि भैला कांइ करुं ॥२॥
आंणिलै पुहुप गूंथिलै माला, बाल गोबिंदहिं हार रचूं ।
पहली बास जुं भंवरै लीनी, जूठणि भैल कांइ करु ॥३॥
आंणिलै धृत जोइलै बाती, बाल गोबिंदहि जोति रचूं ।
पहली जोति जु नैनानि देषी, जूठणि भैला कांइ करुं ॥४॥
आंणिलै अगरषेइलै धूपा, बाल गोबिन्दहिं धूप रचूं ।
पहली बास नासिका आई, जूठणि भैला कांइ करुं ॥५॥
आंणिलै तंदुल रांधिलै षीरो, बाल गोबिंदहि भोग रचूं ।
पहली दूध जु बछा बिटालौ, जूठणि भैला कांइ करुं ॥६॥
आऊं तौ बीठल जाऊं तौ बीठल, बीठल व्यापक माया ।
नांमा का चित हरि सूं लागा, ताथैं परम पद पाया ॥७॥

६०
कांइ रे मन विषिया बन जाहिं । देषत ही ठग मूली षांहि ॥टेक॥
मधुमाषी संचियो अपार । मधु लीन्हौ मुष दीन्हीं छार ॥१॥
गऊ बछ कौ संचै षीर । गलै बांधि दुहि लेइ अहीर ॥२॥
जैसे मीन पानी मैं रहै । काल जाल की सुधि न लहै ॥३॥
जिभ्या स्वारथ निगल्यौ लोह । कनक कामनी बांध्यौ मोह ॥४॥
माया काज बहुत कर्म करै । सो माया ले कुंडे धरै ॥५॥
अति अयान जानै नहीं मूढ । धन धरते अचला भयो धूल ॥६॥
काम क्रोध त्रिस्ना अति जरै । साध संगति कबूहूँ नहिं करै ॥७॥
प्रणवत नांमदेव ताकी आण । निरभै होइ भजौ किन राम ॥८॥

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Last Updated : January 02, 2015

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