हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|हिन्दी पदावली| पद ९१ से १०० हिन्दी पदावली पद १ से १० पद ११ से २० पद २१ से ३० पद ३१ से ४० पद ४१ से ५० पद ५१ से ६० पद ६१ से ७० पद ७१ से ८० पद ८१ से ९० पद ९१ से १०० पद १०१ से ११० पद १११ से १२० पद १२१ से १३० पद १३१ से १४० पद १४१ से १५० पद १५१ से १६० पद १६१ से १७० पद १७१ से १८० पद १८१ से १९० पद १९१ से २०० पद २०१ से २१० पद २११ से २२० पद २२१ से २२९ हिन्दी पदावली - पद ९१ से १०० संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की । Tags : abhangbooknamdevअभंगनामदेवपुस्तक पद ९१ से १०० Translation - भाषांतर ९१कांइ रे भूले मूढे जना । चांमद करवा नहीं आपना ॥टेक॥लोही रक्ता मंझा घनां । तुम जिनि जानौ तन अपना ॥१॥भणत नांमदेव नाराइनां । रामनाम बिन धृग जीवना ॥२॥९२आव कलंदर केसवा । धरि अबदालव भेष बाबा ॥टेक॥ताज कुलह ब्रह्मांडै कीन्हां । पाव सप्त पतांल जी ।चमर पोस मृत मंडल कीन्हां । इहि बिधि बनै गोपाल जी ॥१॥अठारै भार का मुंदगर कीन्हा । सहनक सब संसार जी ।छप्न कोटि का परहन कीन्हा । सोलह सहस इजार जी ॥२॥माया मसीति मन मुलानां । सहज निवाजि गुजार जी ।कंवला सेती काइण पढीया । निराकार आकार जी ॥३॥सहर विसहर सबै तुम फिरीया । तेरा किन हूं मरम न पाया ।नामदेव का चित हरि सूं लागा । आसण करौ रामराया जी ॥४॥९३बैस्नौं ते मैं में ते वैस्नौं । सुनि नारद रिष सांच ।जे भगता मेरे गुन गावै । ताकै अंतरिथ कौ मैं नाचौं नारद ॥टेक॥नारद कहै सुनौ नाराइण । बैकुंठ बसौ कि कविलास ।जहाँ मम कथा तहाँ मैं निहचै । बैस्नौ मंदिर बास नारद ॥१॥गंगा सकल तीरथ करै । गुण चास कोटि करि आवै ।ऐकादशी सहित संजम करै । ते मोंहि सुपने कदे न पावै नारद ॥२॥जोगी जती तपी सन्यासी । ऐक मुनि ध्यान बईठा ।जजै जग्य बेंद धुनि औचरै । तिनहूं कदे न दीठा नारद ॥३॥जोग जग्गि तप नेम धरम व्रत । जब लगि इनकी आसा ।बसुधा आदि देह दहिणांदिक । नहीं मम चरन निवासा नारद ॥४॥जे भगता नृमल जस गावै । ते भगता भम सारं ।जीया जीऊं पीया पीऊं । वैस्नौ मम परिवार नारद ॥५॥बैस्नौ मैं दोई नाहीं नारद । प्रीति किया तैं आऊँ ।भगति हेत यौ व्रत धर्यौ है । बैस्नौ हाथि बंधाऊ नारद ॥६॥विसवाबीस आगै बरताऊं । निज जन नांव सूं राता ।नामांनौ स्वामी परम पद आपै । भगति मुक्ति दोऊ दाता नारद ॥७॥९४माधौ भीतरि मार दुहेली ।अबला कौ बल कहा गुंसाई । परतषि जाइ न पेली ॥टेक॥ऐ अनेक मैं एक गुसाई । कहौ कहा बस मेरा ।षेत की पहुंचि कहां लौ राषै । षसम न करही फेरा ॥१॥तुम से बैद न औषदि औरे । मंत्र और नहीं जाना ।व्याधि असाधि दयानिधि । पचि पचि गये सयांना ॥२॥जिनकूं तुम हरि कारी कीन्हीं । बिथा औरि नहीं व्यापी ।नामदेव कहै नहीं बस मेरा । कृपा करौ दुष कापी ॥३॥९५अवधू बेली विरधि करैली ।निरगुण जाइ निरंजन लागी । मारीहूं न मरैली ॥टेक॥सहज समाधै बाडी रे अवधू । सतगुरु बाही बेली ।अमीमहारस सीचण लागा । तत तरवर जाइ चढैली ॥१॥अमर बेलि अनभै जाइ लागी । टारी हू न टलैली ।रुप रेष ताकै कछु नाहीं । चंदहिं कोटि फलैली ॥२॥पांचूं मृघ पचीसूं मृघी । सूंघत देषि मरैली ।निराकार नांमा तेरी बेली । अनंत अमर फल देली ॥३॥९६अनेक मरि भरि जाहिंगे अवधू । ऐक रांम नांम तत रहैला ॥टेक॥मुई जु आसा मुई जु त्रिस्ना । मुई जु मनसा माई ।लोभ हमारी बहनी मूंई । तिनका सोच हम नाहीं रे अवधू ॥१॥माई का गोत मद मछार मूवा । बापका गोत अहंकार ।काम क्रोध भाई भतीजा मरि गया । तिनका सोच हम नाहीं रे अवधू ॥२॥जा कारनी जोगेस्वर मूवा । तास घरनि मैं जाऊंगा ।नांमदेव सतगुरु साहीला । गोविंद चरन निवासा रे अवधू ॥३॥९७बैरागी रामहिं गाऊंगा ।सबद अतीत अनाहद राता । अकुला कै घरि जाऊंगा ॥टेक॥तीरथ जाऊं न जल मैं पैसूं । जीव जंत न सताऊंगा ।अठसठि तीरथि गुरु लषाये । घट ही भीतरि न्हाऊंगा ॥१॥पाती तोडि न पाहन पूजी । देवल देव न घ्याऊंगा ।पांनि पांनि परसोतम राता । ताकूं मैं न सताऊंगा ॥२॥वेद पुरान सास्त्र गीता । गीत कबीत न गाऊगा ।अषंड मंडल निराकार मैं । अनहद बेनि अजाऊंगा ॥३॥जडी न बूटी ओषद साधूं । राजबैद न कहांऊंगा ।पूरण बैद मिल्यौ बनमाली । नित उंठि नाडि दिषांऊंगा ॥४॥सदा संतोष रहूं आनंद मैं । साइर बूंद समाऊंगा ।गगन मंडल मैं रहनि हमारी । पुनरपि जनमि न आऊंगा ॥५॥इडा पिंगला सुषमनि नारी । पवनां मंझि रहाऊंगा ।चंदसूर दोऊ समिकरि राषूं । ब्रह्म ज्योति मिलि जऊंगा ॥६॥पांच सुभाई मन की सोभा । भला बुरा न कहांऊंगा ।नामदेव कहै मैं केसव घ्याऊं । सहजि समाधि लगाऊंगा ॥७॥९८पुरिष हाजिर वरणि नाहीं । दूरि ठाढा बोलै मांहीं ॥टेक॥ग्यांन ध्यांन रह्त षेलै । अदृष्टि मांह दृष्टि मेलै ॥१॥संग लागा भेष काछै । सारीषा आगै अरु पाछै ॥२॥निगंध रुप विवरजित बासा । प्रणवत नांमदेव हरि दासा ॥३॥९९देवा पातुर बाजै मादल नाचै । येवढा अंचंभा दीठा ।पूछौ पढिया पंडिता । जल बैसंदर बूठा ॥टेक॥चींटी ब्याई हस्ती जाया । येवढा अचंभा थाया ।ऊभी ऊभी नांषीला । मैंमत घूमत आया ॥१॥पांइन पंषि बिनाही उडिया । कैरुं डाली बैठा ।नींब सदाफल सुफल फलिया । सो मोंहि लागै मीठा ॥२॥ससै सींग मछै षुरी । भेड तडका कांनां ।मांषी काजल सारन लागी । ऐसा ब्रह्म गियाना ॥३॥गाई बियाई बछी जाई । गाई बछी कूं धावै ।प्रणवत नामदेव गुरु परसादै । जो पोजै सो पावै ॥४॥१००आज कोई मिलसी मुनै राम सनेही । तब पावै हमारी देही ॥टेक॥भाव भगति मन मैं उपजावै । प्रेम प्रीति हरि अंतरि आवै ॥१॥आपा पर दुविधा सबनासै । सहजै आतम ग्यान प्रकासै ॥२॥जन नांमा मन षरा उदास । तब सुष पावै मिलै हरिदास ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : January 02, 2015 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP