हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|हिन्दी पदावली| पद ११ से २० हिन्दी पदावली पद १ से १० पद ११ से २० पद २१ से ३० पद ३१ से ४० पद ४१ से ५० पद ५१ से ६० पद ६१ से ७० पद ७१ से ८० पद ८१ से ९० पद ९१ से १०० पद १०१ से ११० पद १११ से १२० पद १२१ से १३० पद १३१ से १४० पद १४१ से १५० पद १५१ से १६० पद १६१ से १७० पद १७१ से १८० पद १८१ से १९० पद १९१ से २०० पद २०१ से २१० पद २११ से २२० पद २२१ से २२९ हिन्दी पदावली - पद ११ से २० संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की । Tags : abhangbooknamdevअभंगनामदेवपुस्तक पद ११ से २० Translation - भाषांतर ११अपना पयांना राम अपना पयांनां । नामदेव मूरिष लोग सयाना ॥टेक॥जब हम हिरदै प्रीति बिचारी । रजबल छांडि भए भिषारी ॥१॥जब हरि कृपा करी हम जांनां । तब या चेरा अब भए रांनां ॥२॥नामदेव कहै मैं नरहर गाया । पद षोजत परमारथ पाया ॥३॥१२तूं अगाध बैकुंठनाथा । तेरे चरनौं मेरा माथा ॥टेक॥सरवे भूत नानां पेषूं । जत्र जाऊं तत्र तूं ही देषूं ॥१॥जलथल महीथल काष्ट पषानां । आगम निगम सब बेद पुरानां ॥२॥मैं मनिषा जनम निरबंध ज्वाला । नामां का ठाकुर दीन दयाला ॥३॥१३सबै चतुरता बरतै अपनी ।ऐसा न कोइ निरपष ह्रै षेलै ताथै मिटै अंतर की तपनीं ॥टेक॥अंतरि कुटिल रहत षेचर मति, ऊपरि मंजन करत दिनषपनी ॥१॥ऐसा न कोइ सरबंग पिछानै प्रभु बिन और रैनि दिन सुपनी ॥२॥सोई साध सोई मुनि ग्यानि, जाकी लागि रही ल्यौ रसनी ॥३॥भणत नामदेव तिनि थिति पाई, जाके रांम नांम निज रटनी ॥४॥१४तेरी तेरी गति तूं ही जानै । अल्प जीव गति कहा बषानै ॥टेक॥जैसा तूं कहिये तैसा तूं नाहीं । जैसा तूं है तैसा आछि गुसाईं ॥१॥लूण नीर थै ना ह्रै न्यारा । ठाकुर साहिब प्रांण हमारा ॥२॥साध की संगति संत सूं भेंटा । प्रणवंत नांमा रांम सहेटा ॥३॥१५लोग एक अनंत बानी । मंझा जीवन सारंगपानी ॥टेक॥जिहि जिहि रंगै लोकराता । ता रंगि जन न राचिला ॥१॥जिहि जिहि मारग संसार जाइला, सो पंथ दूरै वंचिला ॥२॥निरबानै पद कोइ चीन्है, झूठै भरम भलाइला ॥३॥प्रणंवत नामा परम तत रे, सतगुरु निकटि बताइला ॥४॥१६लोक कहैं लोकाइ रे नामा ।षट दरसन के निकटि न जाइबौ, भगति जाइगी जाइ रे नाम ॥टेक॥षट क्रम सहित बिप्र आचारी, तिन सूं नाहित कांमा ।जौ हरिदास सबनि थैं नीचे, तौऊ कहेंगे केवल रामा ॥१॥अधम असोच भ्रष्ट बिभचारी पंडरीनाथ कौ लेहि जु नांमा ।वै सब बंध बरग मेरी जीवनि, तिनकै संगि कहयौ मैं रामा ॥२॥गो सति लछि बिप्र कूं दीजै, मन बंछित सब पुरवै कामा ।दास पटंतर तउ न तूलै, भगति हेत जस गावै नामा ॥३॥१७का करौं जाती का करौं पांती । राजाराम सेऊं दिन राती ॥टेक॥मन मेरी गज जिभ्या मेरी काती । रामरमे काटौं जम की फासी ॥१॥अनंत नाम का सींऊं बागा । जा सीजत जम का डर भागा ॥२॥सीबना सीऊं हौं सीऊं ईब सीऊं । राम बना हूं कैसे जीऊं ॥३॥सुरति की सूई प्रेमका धागा । नांमा का मन हरि सूं लागा ॥४॥१८ऐसे मन राम नामैं बेधिला । जैसे कनक तुला चित राषिला ॥टेक॥आनिलैं कागद साजिलै गूडी, आकास मंडल छोडिला ।पंच जना सूं बात बतउवा, चित सूं डोरी राषिला ॥१॥आनिलै कुंभ भराइलै उदिक, राजकुंवारि पुलंदरियै ।हसत विनोद देत करताली, चित सूं गागरि राषिला ॥२॥मंदिर एक द्वार दस जाकै, गउ चरावन चालिला ।पांच कोस थै चरि फिरि आवै, चित सूं बाछा राषिला ॥३॥भणत नामदेव सुनौ तिलोचन, बालक पालनि पौढिला ।अपनै मंदिर काज करंती, चित सूं बालक राषिला ॥४॥१९का नाचीला का गाईला । का घसि घसि चंदन लाईला ॥टेक॥आपा पर नहिं चीन्हीला । तौ चित्त चितारै डहकीला ॥१॥कृत्म आगै नाचै लोई । स्यंभू देव न चीन्है कोई ॥२॥स्यंभ्यूदेव की सेवा जानै । तौ दिव दिष्टी ह्रै सकल पिछानै ॥३॥नामदेव भणै मेरे यही पूजा । आतमराम अवर नहीं दूजा ॥४॥२०रामची भगति दुहेली रे बापा । सकल निरन्तरि चीन्हिले आपा ॥टेक॥बाहरि उजला भीतरि मैला । पांणी पिंड पषालिन गहला ॥१॥पुतली देव की पाती देवा । इहि बिधि नाम न जानै सेवा ॥२॥पाषंड भगति राम नहीं रीझै । बाहरि आंधा लोक पतीजै ॥३॥नामदेव कहै मेरा नेत्र पलट्या । राम चरना चित चिउट्या ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : January 02, 2015 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP