हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|हिन्दी पदावली| पद १ से १० हिन्दी पदावली पद १ से १० पद ११ से २० पद २१ से ३० पद ३१ से ४० पद ४१ से ५० पद ५१ से ६० पद ६१ से ७० पद ७१ से ८० पद ८१ से ९० पद ९१ से १०० पद १०१ से ११० पद १११ से १२० पद १२१ से १३० पद १३१ से १४० पद १४१ से १५० पद १५१ से १६० पद १६१ से १७० पद १७१ से १८० पद १८१ से १९० पद १९१ से २०० पद २०१ से २१० पद २११ से २२० पद २२१ से २२९ हिन्दी पदावली - पद १ से १० संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की । Tags : abhangbooknamdevअभंगनामदेवपुस्तक पद १ से १० Translation - भाषांतर राग टोडी१हरि नांव हीरा हरि नांव हीरा । हरि नांव लेत मिटै सब पीरा ॥टेक॥हरि नांव जाती हरि नांव पांती । हरि नांव सकल जीवन मैं क्रांती ॥१॥हरि नांव सकल सुषन की रासी । हरि नांव काटै जम की पासी ॥२॥हरि नांव सकल भुवन ततसारा । हरि नांव नामदेव उतरे पारा ॥३॥२रांम नांम षेती रांम नांम बारी । हमारै धन बाबा बनवारी ॥टेक॥या धन की देषहु अधिकाई । तसकर हरै न लागै काई ॥१॥दहदिसि राम रह्या भरपूरि । संतनि नीयरै साकत दूरि ॥२॥नामदेव कहै मेरे क्रिसन सोई । कूंत मसाहति करै न कोई ॥३॥३रांमसो धन ताको कहा अब थोरौ । अठ सिधि नव निधि करत निहोरौ ॥टेक॥हरिन कसिब बधकरि अधपति देई । इंद्रकौ विभौ प्रहलाद न लेई ॥१॥देव दानवं जाहि संपदा करि मानै । गोविंद सेवग ताहि आपदा करि जानै ॥२॥अर्थ धरम काम की कहा मोषि मांगै । दास नांमदेव प्रेम भगति अंतरि जो जागै ॥३॥४मंझा प्रांन तूं बीठला । पैडी अटकी हो बाबुला ॥टेक॥कलि षोटी कुसमल कलिकाल । बंधन मोचउ श्री गोपाल ॥१॥काटि नरांइण भौचे बंध । सम्रथ दिढकरि ओडौ कंध ॥२॥नांमदेव नरांइण कीन्ही सार । चले परोहन उतरे पार ॥३॥५रांम रमे रमि रांम संभारै । मैं बलि ताकी छिन न बिचारै ॥टेक॥रांम रमे रमि दीजै तारी । वैकुंठनाथ मिलै बनवारी ॥१॥रांम रमे रमि दीजै हेरी । लाज न कीजै पसुवां केरी ॥२॥सरीर सभागा सो मोहि भावै । पारब्रह्म का जे गुन गावै ॥३॥सरीर धरे की इहै बडाई । नांमदेव राम न बीसरि जाई ॥४॥६रांम बोले राम बोले राम बिना को बोले रे भाई ॥टेक॥ऐकल मींटी कुंजर चीटी भाजन रे बहु नाना ।थावर जंगम कीट पतंगा, सब घटि रांम समाना ॥१॥ऐकल चिता राहिले निता छूटे सब आसा ।प्रणवत नांमा भये निहकामा तुम ठाकुर मैं दासा ॥२॥७रांम सो नामा नाम सो रांमा । तुम साहिब मैं सेवग स्वामां ॥टेक॥हरि सरवर जन तरंग कहावै । सेवग हरि तजि कहुं कत जावे ॥१॥हरि तरवर जन पंषी छाया । सेवग हरिभजि आप गवाया ॥२॥नामा कहै मैं नरहरि पाया । राम रमे रमि राम समाया ॥३॥८जन नांमदेव पायो नांव हरी ।जम आय कहा करिहै बौरै । अब मोरी छूटि परी ॥टेक॥भाव भगति नाना बिधि कीन्ही । फल का कौन करी ।केवल ब्रह्म निकटि ल्यौ लागी । मुक्ति कहा बपुरी ॥१॥नांव लेत सनकादिक तारे । पार न पायो तास हरी ।नांमदेव कहै सुनौ रे संतौ । अब मोहिं समझि परी ॥२॥९रांमनाम जपिबौ श्रवननि सुनिबौ ।सलिल मोह मैं बहि नहीं जाईबौ ॥टेक॥अकथ कथ्यौ न जाइ । कागद लिख्यौ न माइ ।सकल भुवनपति मिल्यौ है सहज भाइ ॥१॥रांम माता रांम पिता रांम सबै जीव दाता ।भणत नामईयौ छीपौ । कहै रे पुकारि गीता ॥२॥१०धृग ते बकता धृग ते सुरता । प्राननाथ कौ नांव न लेता ॥टेक॥नाद वेद सब गालि पुरांनां । रामनाम को मरम न जाना ॥१॥पंडित होइ सो बेद बषानै । मूरिष नांमदेव राम ही जानै ॥२॥ N/A References : N/A Last Updated : January 02, 2015 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP