हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|हिन्दी पदावली| पद ८१ से ९० हिन्दी पदावली पद १ से १० पद ११ से २० पद २१ से ३० पद ३१ से ४० पद ४१ से ५० पद ५१ से ६० पद ६१ से ७० पद ७१ से ८० पद ८१ से ९० पद ९१ से १०० पद १०१ से ११० पद १११ से १२० पद १२१ से १३० पद १३१ से १४० पद १४१ से १५० पद १५१ से १६० पद १६१ से १७० पद १७१ से १८० पद १८१ से १९० पद १९१ से २०० पद २०१ से २१० पद २११ से २२० पद २२१ से २२९ हिन्दी पदावली - पद ८१ से ९० संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की । Tags : abhangbooknamdevअभंगनामदेवपुस्तक पद ८१ से ९० Translation - भाषांतर राग माली गौडी८१हमारै गोपालराजा गोपालराजा । और देव सूं नाहिन काजा ॥टेक॥काहू सुमृत वेद पुराना । चरन कंवल मेरे मन माना ॥१॥काहू के लाछिमी भंडार । मेरे राम को नांम अधार ॥२॥काहूके है गै पाइक हाथी । मेरे रांम नांव संघाती ॥३॥सरब लोक जाको जस गाजा । नांमां का चित हरि सूं लागा ॥४॥८२कहि मन गोविंद गोविंद ।चरन कवल चितवनि जिनि बिसरै गोविंद गोविंद गोविंद ॥टेक॥अंतरि गर्भ सह्यौ दुष भारी । आवत जात परयौ मै हारी ॥१॥भणत नांमदेव हरिगुण गाऊं । बहुरि न भवजल नीरौं आऊं ॥२॥८३राम गोविंद कमोदनि चंदा । छिन छिन पांन करै मकरंदा ॥टेक॥जैसे कमल में कुसमलताई । मधि गोपाल परसि फिरि आई ॥१॥अष्ट कंवल दल नांमदेव गावै । चरन कंवल रज काहे न पावै ॥२॥८४जपि रांमनांम महामंत्र । रांम बिना नहीं मुकति अनंत्र ॥टेक॥महादेव उपदेसी गौरी । राम नांम जपि रसनां बौरी ॥१॥जो पद नारद ध्रूं कूं सिषावा । सुरनि सुमृति संतनि सुष पावा ॥२॥जन नांमदेव रांम नांम जपैला । चौरासि विष ऊतरि जैला ॥३॥८५गुड मीठा राम गुड मीठा । जिनि लह्या तिनि गुन दीठा ॥टेक॥नैननि पाया श्रवननि षाया । तृपित भई त्रिस्ना मधि माया ॥१॥पांचं ऊष षनि ग्यान गंडासी । कोल्हू ध्यान धरौ तिह पासी ॥२॥घट कूंडा जब होइ न दोषी । सहज अनल गुड सोनां होसी ॥३॥गुरुत्वा सो गुडवाई साजा । सो गुड हुवा तिहूं पुर राजा ॥४॥नांमदेव प्रणवै कस न मिठाई । जहां जतन सुमिरन बनि आई ॥५॥राग रामगिरी८६लाधौ तौ लाधौ मैं राम नांम लाधौ । प्रेमै पाटै सुत्रै पोयौ, कंठि लै बांधौ ॥टेक॥राम नाम ततसार । सुमरि सुमरि जन उतरे पार ॥१॥रामं जननी राम पिता । राम बंधू भौ तारिता ॥२॥भणत नांमदेव हरि गुण गाऊं । बहुरि न जोनी संकुट आऊं ॥३॥८७वाद छाडि रे भगता भाई । हरि सी तैं निधि पाई ।राम तजि मेरो मन अनत न जाई ॥टेक॥जप माला तागै पोई । सरीर अंतरि है सोई ।वादि विमुष हरि बिनु दिन षोई ।राम नाम जपि लोई । परम तत है सोई ।तीनौ रे त्रिलोक व्यापै दूजौ नहिं कोई ॥१॥सजीवन मूरी सोई नटारंभ संगि गाई ।रामनाम बिन नाहीं आन उपाई ।नामदेव उतर्यौ पार । चेतहु रे चेतन हार ।हरि की भगति बिन औतरोगे बारंबार ॥२॥८८हरि लै हरि लै हरि लै हरि ।अपनी भगति रांम करि लै षरी ॥टेक॥तुमसा ठाकुर कीजै । काहे न प्रतीति लीजै ।अपनी बापौती कारणि प्राण दीजै ॥१॥तुमची प्रतीति आई । दुरमति तजिले भाई ।सुत कूं जननी कैसे विष पाई ॥२॥बालक जे रुदन करे । मझ्या जैसे प्रांन धरे ।पारब्रह्म पिता नांमा लाड लडै ॥३॥८९छांडि छांडि रे मुगुध नर कपट न कीजै ।गोविंद नाराइन नांम मुषां लीजै ॥टेक॥कोटि जौ तीरथ करि । तन जो हिवालै गलै ।पृथ्वी जे सकल परदछिन दीजै । करवत कासी मैं लीजै ।सिव कू जो सीस दीजै । रामनाम सरि तऊ न तूलै ॥१॥बानारसी तपि करै पलटि तीरथ फिरै ।काया जे अगिनी मुष कलेस कीजै । हिरन गर्भ दान दीजै ।अस्वमेध जग्य कीजै । रामनाम सरि तऊ न तुलै ॥२॥मान जै सरोवर जइये । गया जौ कुरषेत्र न्हइये ।गोमती सनान गऊ कोटि कीजै । कुंभ जौ केदार जइये ।सिंघहस्त गोदावरी न्हइऐ । रांम नांम सरि तऊ न तूलै ॥३॥अस्वदान गजदान भोमिदान कन्यादान ।गृहदान सज्या दांन दांन दीजे ।तन तुला तोलि दीजै । मन जौ नृमल कीजै ।रामनांम समि तऊ न तुलै ॥४॥जमहिं न दीजै दोस मनहिं न कीजै रोस ।निरषि नृवाण पद रामनाम लीजै ।आत्मा अंगि लगाइ । सेविलै सहज भाइ ।भणत नामईयौ छीपौ अंमृत पीजै ॥५॥९०राम भगति बिन गति न तिरन की । कोटि उपाइ जु करही रे नर ।जल सींचै करि प्रवालै । आंब बबूल न फलही रे नर ॥टेक॥आपा थापि और कूं नींदै । गर्व मान के मारे ।फिर पीछे पछिताउगे बौरे । रतन न मिलहिं उधारे रे नर ॥१॥यहु ममिता अपनी जिनि जानौ । धन जोबन सुत दारा ।बालू के मंदिर बिनसि जांहिगे । झूठे करहु पसारा रे नर ॥२॥जोग न भोग मोह नहीं माया । का भयौ बन मैं बासा ।चरनं कंवल अनुराग न उपजै । तब लगि झूठी आसा रे नर ॥३॥मनिषा जनम आई नहिं चेता । अंधे पसू गंवारा ।तेरे सिर काल सदा सर साधै । नांमदेव करत पुकारा रे नर ॥४॥ N/A References : N/A Last Updated : January 02, 2015 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP