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श्लोक ५२९ ते ५७०

मनुष्यवर्गः - श्लोक ५२९ ते ५७०

अमरकोश में संज्ञा और उसके लिंगभेद का अनुशासन या शिक्षा है। अन्य संस्कृत कोशों की भांति अमरकोश भी छंदोबद्ध रचना है।


५२९) मनुष्या मानुषा मर्त्या मनुजा मानवा नराः

५३०) स्युः पुमांसः पञ्चजनाः पुरुषाः पूरुषा नरः

५३१) स्त्री योषिदबला योषा नारी सीमन्तिनी वधूः

५३२) प्रतीपदर्शिनी वामा वनिता महिला तथा

५३३) विशेषास्त्वङ्गना भीरुः कामिनी वामलोचना

५३४) प्रमदा मानिनी कान्ता ललना च नितम्बिनी

५३५) सुन्दरी रमणी रामा कोपना सैव भामिनी

५३६) वरारोहा मत्तकाशिन्युत्तमा वरवर्णिनी

५३७) क्र्ताभिषेका महिषी भोगिन्योऽन्या नृपस्त्रियः

५३८) पत्नी पाणिग्र्हीती च द्वितीया सहधर्मिणी

५३९) भार्या जायाथ पुंभूम्नि दाराः स्यात्तु कुटुम्बिनी

५४०) पुरंध्री सुचरित्रा तु सती साध्वी पतिव्रता

५४१) क्र्तसापत्निकाध्यूढाधिविन्नाथ स्वयंवरा

५४२) पतिंवरा च वर्याथ कुलस्त्री कुलपालिका

५४३) कन्या कुमारी गौरी तु नग्निकानागतार्तवा

५४४) स्यान्मध्यमा द्र्ष्टरजास्तरुणी युवतिः समे

५४५) समाः स्नुषाजनीवध्वश्चिरिण्टी तु स्ववासिनी

५४६) इच्छावती कामुका स्याद्वृषस्यन्ती तु कामुकी

५४७) कान्तार्थिनी तु या याति संकेतं साभिसारिका

५४८) पुंश्चली धर्षिणी बन्धक्यसती कुलटेत्वरी

५४९) स्वैरिणी पांसुला च स्यादशिश्वी शिशुना विना

५५०) अवीरा निष्पतिसुता विश्वस्ताविधवे समे

५५१) आलिः सखी वयस्याथ पतिवत्नी सभर्तृका

५५२) व्र्द्धा पलिक्नी प्राज्ञी तु प्रज्ञा प्राज्ञा तु धीमती

५५३) शूद्री शूद्रस्य भार्या स्याच्छूद्रा तज्जातिरेव च

५५४) आभीरी तु महाशूद्री जातिपुंयोगयोः समा

५५५) अर्याणी स्वयमर्या स्यात्क्षत्रिया क्षत्रियाण्यपि

५५६) उपाध्यायाप्युपाध्यायी स्यादाचार्यापि च स्वतः

५५७) आचार्यानी तु पुंयोगे स्यादर्यी क्षत्रियी तथा

५५८) उपाध्यायान्युपाध्यायी पोटा स्त्रीपुंसलक्षणा

५५९) वीरपत्नी वीरभार्या वीरमाता तु वीरसूः

५६०) जातापत्या प्रजाता च प्रसूता च प्रसूतिका

५६१) स्त्री नग्निका कोटवी स्याद्दूतीसंचारिके समे

५६२) कात्यायन्यर्धव्र्द्धा या काषायवसनाऽधवा

५६३) सैरन्ध्री परवेश्मस्था स्ववशा शिल्पकारिका

५६४) असिक्नी स्यादव्र्द्धा या प्रेष्याऽन्तःपुरचारिणी

५६५) वारस्त्री गणिका वेश्या रूपाजीवाथ सा जनैः

५६६) सत्क्र्ता वारमुख्या स्यात्कुट्टनी शम्भली समे

५६७) विप्रश्निका त्वीक्षणिका दैवज्ञाथ रजस्वला

५६८) स्त्रीधर्मिण्यविरात्रेयी मलिनी पुष्पवत्यपि

५६९) र्तुमत्यप्युदक्यापि स्याद्रजः पुष्पमार्तवम्

५७०) श्रद्धालुर्दोहदवती निष्कला विगतार्तवा

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Last Updated : March 30, 2010

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