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بَلاہَک
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बलाहक
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ਬਲਾਹਕ
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বলাহক
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ବଳାହକ
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બલાહક
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बलाहकः
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بَلاہک
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اَشٹٕکُل
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बळाहक
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अष्टकुल
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अष्टकूळ
Meanings: 1; in Dictionaries: 1
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वलाहक
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रामचंद्राचीं आरती - दशरथ राजकुमारा धृत मुक्ता...
रामचंद्राचीं आरती
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उन्नाह
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यौक्तिक
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सहस्त्र नामे - श्लोक २१ ते २५
श्रीगणेशाच्या सहस्त्रनामांचे मराठी अर्थ.
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अर्थालंकार - प्रतीप
काव्यास ज्याच्या योगाने शोभा येते त्यास अलंकार असे म्हणतात.
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श्रीगणेशसहस्त्रनाम - श्लोक २१ ते ३०
विश्वातील सर्व कारणांचे कारण असणारा असा सर्वात्मा , वेदांनी ज्याची महती गायली आहे , सर्वप्रथम पूजनीय असणार्या अशा गणेशाला मी वंदन करितो .
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अध्याय ५० वा - श्लोक १६ ते २०
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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कार्तिक माहात्म्य - अध्याय १५
कार्तिक माहात्म्य वाचल्याने गतजन्मातील पापे नष्ट होतात.
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अध्याय ८९ वा - श्लोक ४६ ते ५०
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’ - प्रेयसी
सूर्यकांत त्रिपाठी की रचनाये मनको छू लेती है।
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काश्मीरिकमुख्यनागवर्णनम्
नीलमत पुराण अंदाजे सहाव्या ते आठव्या शतकातील ग्रंथ आहे, यात कश्मीरमधील इतिहास, भूगोल, धर्म आणि लोकगाथांबद्दल विपुल माहीती आहे.
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स्कंध १० वा - अध्याय ५३ वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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अध्याय तेहतीसावा - श्लोक ५१ ते १००
श्रीधरस्वामी रचित ’ श्रीरामविजय ’ ग्रंथाचे पारायण केल्याने जीवनातील वनवास संपून सुख प्राप्त होते .
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अध्याय चवतीसावा - श्लोक १५१ ते २११
श्रीधरस्वामी रचित ’ श्रीरामविजय ’ ग्रंथाचे पारायण केल्याने जीवनातील वनवास संपून सुख प्राप्त होते .
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उत्तरकाण्ड - दोहा ४१ से ५०
गोस्वामी तुलसीदासजीने रामचरितमानस ग्रन्थकी रचना दो वर्ष , सात महीने , छ्ब्बीस दिनमें पूरी की। संवत् १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाहके दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।
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अध्याय बारावा - श्लोक १ ते ५०
श्रीधरस्वामी रचित ’ श्रीरामविजय ’ ग्रंथाचे पारायण केल्याने जीवनातील वनवास संपून सुख प्राप्त होते.
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अध्याय चोवीसावा - श्लोक १०१ ते १५०
श्रीधरस्वामी रचित ’ श्रीरामविजय ’ ग्रंथाचे पारायण केल्याने जीवनातील वनवास संपून सुख प्राप्त होते .
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अध्याय तिसरा - श्लोक ५१ से १००
श्रीधरस्वामी रचित ’ श्रीरामविजय ’ ग्रंथाचे पारायण केल्याने जीवनातील वनवास संपून सुख प्राप्त होते.
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अध्याय सोळावा - श्लोक १५१ ते २०६
श्रीधरस्वामी रचित ’ श्रीरामविजय ’ ग्रंथाचे पारायण केल्याने जीवनातील वनवास संपून सुख प्राप्त होते.
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उत्तरभागः - अध्यायः २४
ब्रह्माण्डाच्या उत्पत्तीचे रहस्य या पुराणात वर्णिलेले आहे.
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संकेत कोश - संख्या ७
हिंदू धर्मात असे अनेक संकेत आहेत ,जे आपल्या जीवनात मोलाचे कार्य बजावतात .
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संकेत कोश - संख्या ४
हिंदू धर्मात असे अनेक संकेत आहेत ,जे आपल्या जीवनात मोलाचे कार्य बजावतात .
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रुक्मिणी स्वयंवर - प्रसंग पाचवा
रुक्मिणी स्वयंवर या ग्रंथाचे पारायण केल्याने विवाह लवकर होण्यास मदत होते आणि सुस्वरूप, अनुरूप पती मिळतो असा अनेकांचा अनुभव आहे म्हणून शक्यतो कुमारिकांनी या ग्रंथाचे पारायण करावे.
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गुरूचरित्र - अध्याय त्रेपन्नावा
श्रीगुरुचरित्र हा ग्रंथ महाराष्ट्रात वेदांइतकाच मान्यता पावलेला आहे.
Shri GuruCharitra is the most influential book written in Marathi.
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लंकाकाण्ड - दोहा ८१ से ९०
गोस्वामी तुलसीदासजीने रामचरितमानस ग्रन्थकी रचना दो वर्ष , सात महीने , छ्ब्बीस दिनमें पूरी की। संवत् १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाहके दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।
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श्रीविष्णुपुराण - द्वितीय अंश - अध्याय ४
भारतीय जीवन-धारा में पुराणों का महत्वपूर्ण स्थान है, पुराण भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है,वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है।
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लंकाकाण्ड - दोहा १०१ से ११०
गोस्वामी तुलसीदासजीने रामचरितमानस ग्रन्थकी रचना दो वर्ष , सात महीने , छ्ब्बीस दिनमें पूरी की। संवत् १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाहके दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।
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सुभद्राचंपू - सर्ग तिसरा
निरंजन माधवांच्या कवितेतील काव्यस्फूर्ति उच्च दर्जाची असून, भाषेत रसाळपणा व प्रसाद सोज्वळता आहे.
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अधिकमास माहात्म्य - अध्याय तिसरा
अधिकमास माहात्म्य - अध्याय तिसरा
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जयद्रथ
Meanings: 13; in Dictionaries: 7
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सुग्रीव
Meanings: 53; in Dictionaries: 10
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अलंकारदर्श - कठीण शब्दांचा कोष
काव्यास ज्याच्या योगाने शोभा येते त्यास अलंकार असे म्हणतात.
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श्रीकृष्ण कथामृत - दहावा सर्ग
संतकवि श्रीगणुदास यांनी रचलेले श्रीकृष्ण - कथामृत अमृताची गोडी देते.
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कथाकल्पतरू - स्तबक ४ - अध्याय ८
'कथा कल्पतरू' या ग्रंथात चार वेद, सहा शास्त्रे, अठरा पुराणे, तसेच रामायण, महाभारत व श्रीमद्भागवत हे हिंदू धर्मिय वाङमय ओवीरूपाने वर्णिलेले आहे.
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श्रीशिवलीलामृत - अध्याय पहिला
भगवान शंकराची कृपा प्राप्त करून घेण्यासाठी शिवलीलामृत पोथीचे पारायण करावे.
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पूर्वार्धम् - अध्यायः ४९
वायुपुराणात खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, युग, तीर्थ, पितर, श्राद्ध, राजवंश, ऋषिवंश, वेद शाखा, संगीत शास्त्र, शिवभक्ति, इत्यादिचे सविस्तर निरूपण आहे.
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अनुषङ्गापादः - अध्यायः १९
ब्रह्माण्डाच्या उत्पत्तीचे रहस्य या पुराणात वर्णिलेले आहे.
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