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अध्याय २०

श्रीवामनपुराण - अध्याय २०

श्रीवामनपुराणकी कथायें नारदजीने व्यासको, व्यासने अपने शिष्य लोमहर्षण सूतको और सूतजीने नैमिषारण्यमें शौनक आदि मुनियोंको सुनायी थी ।


नारदजीने पूछा - ( पुलस्त्यजी ! ) दुर्गादेवीने सेना एवं वाहनोंके सहित महिषासुरको किस प्रकार मार डाला, इसे आप विस्तारसे कहें । मेरे मनमें यह शंका घर कर गयी है कि शस्त्रोंके विद्यमान होते हुए भी देवीने पैरोंसे उसे क्यों मारा ? ॥१ - २॥

[ फिर नारदजीके प्रश्नको सुनकर ] पुलस्त्यजीने कहा - नारदजी ! देवयुगके आदिमें घटित तथा पाप एवं भयको दूर करनेवाली इस प्राचीन एवं पविर कथाको आप सावधान होकर सुनिये । एक बार इसी प्रकार ( अर्थात् ) पूर्ववर्णित रीतिसे क्रुद्ध होकर नमरने भी हाथी, घोड़े और रथोंके साथ वेगपूर्वक देवीके ऊपर आक्रमण कर दिया था । फिर देवीने भी उसे भलीभाँति देखा । इसके बाद दैत्यनें अपने धनुषको झुकाकार ( चढ़ाकर ) विन्ध्य बादल ( उसपर ) धारा - प्रवाह ( मूसलाधार ) जलवृष्टि करता हो । उसके बाद उस दैत्यकी बाण - वर्षासे पर्वतको सर्वथ ढका देखकर देवीको बड़ा क्रोध हुआ और तब्व उन्होंमें वेगपर्वक झत विशाल धनुषको चढ़ा लिया ॥३ - ६॥

श्रीदुर्गाजीद्वारा चढ़ाया गया सोनेकी पीठवाला वह धनुष दानवी - सेनामें इस प्रकार चमक उठा, जैसे बादलोंमें बिजली चमकती है । शुभ व्रतवाले श्रीनारदजी । श्रीदुर्गाजीने कुछ दैत्योंको बाणोंसे, कुछको तलवारसे, कुछको गदासे, कुछको मुसलमें और कुछ दैत्योंको ढल चलाकर ही मार डाला । कालके समान देवीके सिंहने ( भी ) अपनी गर्दनके बालोंको झाड़ते हुए आकेला ही अनेकों दैत्योंका संहार कर डाला । देवीनें कुछ दैत्योंको वज्रसे आहत कर दिया, कुच दैत्योंके वक्ष - स्थलको शक्तिसे फाड़ डाला, कुछके गर्दनको हलसे विदीर्ण किर कुछको फरसेसे काट डाला, कृछके सिरको दण्डसे फोड़ दिया तथा कुछ दित्योंके शरेरके संधि - स्थानोंके चक्रसे छिन्न - भि न्न कर दिया । कुछ प हले ही चले गये,कुछ गिर गये, कुच्छ मूर्च्छित हो गये और कुछ युद्धभूमि छोड़कर भाग गये ॥७ - ११॥

भयंकर रुपवाली दुर्गाद्वारा मारे जा रहे दैत्य एवं दानव भयसे व्याकुल हो गये तथा वे उन्हें कालरात्रिके समान मानते हुए डरसे भाग चले । सेनाके अग्र ( प्रधान ) भागको नष्ट तथा अपने सम्मुख दुर्गाको स्थित देखकर नमर मतवाले हाथीपर चढ़कर आगे । आया । उस दानवने युद्धमेंख देवीके ऊपर शक्तिसे कसकर प्रहार किया एवं सिंहके ऊपर त्रिशूल चलाया । ( किंतु ) देवीने उन दोनों अस्त्रोंको आते देख हुंका से ही उन्हें भस्म कर डाला । इधर नमरके हाथीने ( सूँड़से ) सिंहकी कमर पकड़ ली ॥१२ - १५॥

इसपर सिंहने तेजीसे उछलकर नमर दानवको पंजेसे मारकर उसके प्राण ले लिये और हाथीके कंधेसे उसे नीचे गिराकर देवीके आगे रख दिया । नारदजी ! देवी कात्यायनी क्रोधसे उस दैत्यको मध्यमें पकड़कर तथा बायें हाथसे घुमाकर ढोलके समान बजाने लगीं और उसे अपना बाजा बनाकर उन्होंने जोरसे अट्टहास किया । उनके हँसनेसे अनेक प्रकारके अद्भुत भूत उत्पन्न हो गये । कोई - कोई ( भूत ) व्याघ्रके समान भयंकर मुखवाले थे, किसीकी आकृति भेड़ियेके समान थी, किसीका मुख घोड़ेके तुल्य और किसीका मुख भैंसेजैसा एवं किसीका सूकरके समान मुँह था ॥१६ - १९॥

उनके मुँह चूहे, मुर्गे ( कुक्कुट ), गाय, बकरा और भेड़के मुखोंके समान थे । कई नाना प्रकारके मुख, आँख एवं चरणोंवाले थे तथा वे नाना प्रकारके आयुध धारण किये हुए थे । उनमें कुछ तो समूह बनाकर गाने लगे, कुछ हँसने लगे और कुछ रमण करने लगे तथा कुछ बाजा बजाने लगे एवं कुछ देवीकी स्तुति करने लगे । देवीने उन भूतगणोंके साथ उस दानव - सेनापर आक्रमण कर उसे इस प्रकार तहस - नहस कर दिया, जैसे भारी वज्रके समान ओलोंके गिरनेसे खेतीका संहार हो जाता है । इस प्रकार सेनाके अग्रभाग तथा सेनापतिके मारे जानेपर अब सेनापति चिक्षुर देवताओंसे भिड़ गया - युद्ध करने लगा ॥२० - २३॥

रथियोंमें श्रेष्ठ उस दैत्यने अपने मजबूत धनुषको अपने कानोंतक चढ़ाकर उससे बाणोंकी इस प्रकार वर्षा की जैसे मेघ पृथ्वीपर ( घनघोर ) जल बरसाते हैं । परंतु दुर्गाने भी सुन्दर पर्वों ( गाँठों ) - वाले अपने बाणोंसे उन बाणोंको काट डाला और फिर सुवर्णसे निर्मित पंखवाले सोलह बाणोंको अपने हाथोंमें ले लिया । उन्होंने क्रुद्ध होकर चार बाणोंसे उसके चार घोड़ोंको और एकसे सारथीको मारकर एक बाणसे उसकी ध्वजाके दो टुकड़े कर दिये । फीर अम्बिकाने एक बाणसे उसके बाणसहित धनुषको काट डाला । धनुष कट जानेपर बलवान् चिक्षुरने ढाल और तलवार उठा ली ॥२४ - २७॥

वह ढाल और तलवारको जोर लगाकर घुमा ही रहा था कि देवीने चार बाणोंसे उन्हें काट डाला । इसपर उस दैत्यने शूल ले लिया । महान् शूलको घुमाकर वह अम्बिकाकी ओर इस प्रकार दौड़ा, जैसे वनमें सियार आनन्दमग्न होकर सिंहिनीकी ओर दौड़े ! पर देवीने अत्यन्त क्रुद्ध होकर पाँच बाणोंसें उस असुरके दोनों हाथों, दोनों पैरों एवं मस्तकको काट डाला, जिससे वह असुर मरकर गिर पड़ा । उस सेनापतिके मरनेपर उग्रास्य नामका महान् असुर तथा करालास्य नामका दानव - ये दोनों तेजीसे उनकी ओर दौड़े ॥२८ - ३१॥

बाष्कल, उद्धत, उदग्र, उग्रकार्मुक, दुर्द्धर, दुर्मुख तथा बिडालाक्ष - ये तथा अन्य अनेक अत्यन्त बाली एवं श्रेष्ठ दैत्य शस्त्र और अस्त्र लेकर दुर्गाकी ओर दौड़ पड़े । देवी दुर्गाने उन्हें देखा और वे लीलापूर्वक हाथोंमें वीणा एवं श्रेष्ठ डमरु लेकर हँसती हुई उन्हें बजाने लगीं । देवी उन वाद्योंको ज्यों - ज्यों बजाती जाती थीं, त्यों - त्यों सभी भूत भी नाचते और हँसते थे ॥३२ - ३५॥

अब असुर शस्त्र लेकर महासरस्वतीरुपा दुर्गाके पास जाकर उनपर प्रहार करने लगे । पर परमेश्वरीने ( तुरंत ) उनके बालोंको जोरके साथ पकड़ लिया । उन महासुरोंका केश पकड़कर और फिर सिंहसे उछलकर पर्वत - श्रृङ्गपर जाकर जगज्जननी दुर्गा वीणा - वादन करती हुई मधुपान करने लगीं । तभी देवीने अपने बाहुदण्डोंसे सभी असुरोंको मारकर उनके घमण्डको चूर कर दिया । उनके वस्त्र शरीरसे खिसक पड़े और वे प्राणरहित हो गये । यह देखकर महाबली महिषासुर अपने खुरके अग्रभागसे, तुण्डसे, पुच्छसे, वक्षः स्थलसे तथा निः श्वास - वायुसे देवीके भूतगणोंको भगाने लगा ॥३६ - ३९॥

और अपने बिजलीकी कड़कके समान नाद एवं सींगोंकी नोकसे शेष भूतोंको व्याकुल कर रणक्षेत्रमें सिंहको मारने दौड़ा । इससे अम्बिकाको बड़ा क्रोध हुआ । फिर वह क्रुद्ध महिष अपने नुकीले सींगोंसे जल्दी - जल्दी पर्वतों एवं पृथ्वीको विदीर्ण करने लगा । वह समुद्रको क्षुब्ध करते तथा मेघोंको तितर - बितर करते हुए दुर्गाकी ओर दौड़ा । इसपर उन देवीने उस दुष्टको पाशसे बाँध दिया, पर वह झटसे मदसे भींगे कपोलोंवाला गजराज बन गया । ( तब ) देवीने उस गजके शुण्डका अगला भाग काट डाला । अब उसने पुनः भैंसेका रुप धारण कर लिया । महर्षि नरदजी ! उसके बाद देवीने उसके ऊपर शूल फेंका जो टूटकर पृथ्वीपर गिर पड़ा । तत्पश्चात् उन्होंने अग्निसे प्राप्त हुई शक्ति फेंकी, किंतु वह भी टूटकर गिर पड़ी ॥४० - ४३॥

दानवसमूहको मारनेवाला विष्णुप्रदत्त चक्र भी फेंके जानेपर व्यर्थ हो गया । देवीने कुबेरद्वारा दी गयी गदा भी घुमाकर फेंकी, पर वह भी भग्न होकर पृथ्वीपर गिर पड़ी । महिषने वरुणके पाशको भी अपने सींग, थूथना एवं खुरके प्रहारसे विफल कर दिया । फिर कुपित होकर देवीने यमदण्डको छोड़ा, पर उसे भी उसने तोड़कर कई खण्ड - खण्ड कर डाला । उसके शरीरपर देवीद्वारा छोड़ा गया इन्द्रका वज्र भी छोटे - छोटे टुकड़ोंमें बिखर गया । अब दुर्गाजी सिंहको छोड़कर सहसा महिषासुरकी पीठपर ही चढ़ गयी देवीके पीठपर चढ़ जानेपर भी महिषासुर अपने बलके मदसे उछलता रहा । देवी भी अपने मृदुल तथा कोमल चरणोंसे भींगे मृगचर्मके समान उसकी पीठको मर्दन करती गयीं ॥४४ - ४७॥

अन्तमें देवीद्वारा कुचला जाता हुआ पर्वताकार बलवान् महिष बलशून्य हो गया । तब देवीने अपने शूलसे उसकी गर्दन काट दीं । उसके कटे कण्ठसे तुरंत तलवार लिये एक पुरुष निकल पड़ा । उसके निकलते ही देवीने उसके हदयपर चरणसे आघात किया और क्रोधसे उसके बालोंको समेतकर पकड़ लिया तथा अपनी श्रेष्ठ तलवारसे उसका भी सिर काट डाला । उस समय दैत्योंकी सेनामें हाहाकार मच गया । चण्ड, मुण्ड, मय, तार और असिलोमा आदि दैत्य भवानीके प्रमथगणोंद्वारा प्रताडित एवं भयसे उद्विग्र होकर पातालमें प्रविष्ट हो गये । महर्षि नारदजी ! इधर देवीकी विजयको देखकर देवतागण स्तुतियोंके द्वारा सम्पूर्ण जगतकी आधारभूता, क्रोधमुखी, सुरुपा, नारायणी, कात्यायनीदेवीकी स्तुति करने लगे । देवताओं और सिद्धोंद्वारा स्तुति की जाती हुई दुर्गाने ' मैं आप देवताओंके श्रेयके लिये पुनः आविर्भूत होऊँगी ' - ऐसा कहकर शिवजीके पादमूलमें लीन हो गयीं ॥४८ - ५२॥

॥ इस प्रकार श्रीवामनपुराणमें बीसवाँ अध्याय समाप्त हुआ ॥२०॥

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Last Updated : January 24, 2012

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