अप्रकाशित कविता - चन्द्रास

डॉ. माधव त्रिंबक पटवर्धन ऊर्फ माधव जूलियन, (जन्म २१ जानेवारी १८९४; मृत्यु २९ नोव्हेंबर १९३९) हे मराठी भाषेतील प्रतिथयश कवी होऊन गेले.


चन्द्रा डौल कशास हवा,                
व्यर्थ तुला हा नित्य नवा
उसनें आणुन अवसान,                
झटसी मिळवाया मान
मान मिळे पण थोरांस          
कधी न चोरां - पोरांस
तेजाची चोरी करुनी,               
मिरवीशी गगनीं अजुनी
दिमाख बाजूला ठेव,              
तव न, दुज्याची ही ठेव
स्वयंप्रकाशित जे असती,              
धन्य असे त्यांची महती
त्यांपुढती तव काय कथा,              
लागलास या कुठुन पथा ?
म्हणशिल मम तेजच मन्द,           
मन्दा हा फ़सवा छंद
तेजस्व्यांचा प्रखरपणा             
नाही, कां मग अहंपणा ?
मधुर मधुरतर शब्दांहीं           
जें जें तुझ्यामधी नाही
तत्त्यागाचें पुण्य असे,                
मिळवूं बघसी नच गवसे
चन्द्रा तुझिया तेजांत                
प्रेमीं हृदयें रमतात
परस्परांतें हृदगत तीं                 
कथिती आरामीं रतते३ए
शारीरिक इच्छा प्रीती               
उत्कट धरिती निज चित्तीं
देहापासुनी विविध सुखें              
भोगति सांगतिही स्वमुखें
कामुक धांगडधिंगाणा                
घालावा त्यांचा बाणा
चन्द्रा तुज अवलोकाया                  
सांपडतें हें लोकीं या
सांग मला तर किति हृदयें               
अशीं सुखावति तव उदयें
राज्यांत तुझ्या अपराध            
किती चालती बेदाद
किती जुलूमहि अविचार          
करिती सन्तत संचार
तुझ्यामुळे त्या स्फ़ुरण चढे         
मानस त्यांचें अधिक उडे

सुमारे १९१२

N/A

References : N/A
Last Updated : November 11, 2016

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP